आज आज़ादी के ऐसे कई चेहरे गुम हो गए हैं जिनके योगदान को अगर हम देखेंगे तो हमारे रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आज हमें जरूरत है तो इन गुमनाम चेहरों को जानने की। आइए जानते हैं बीके दत्त (Batukeshwar Dutt Struggle Story In Hindi)
बटुकेश्वर दत्त || Batukeshwar Dutt History In Hindi
बटुकेश्वर दत्त के अंदर बचपन से ही अपने राष्ट्र और संस्कृति के लिए प्रेम था। वह केवल 14 वर्ष के थे जब उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने का निर्णय लिया था। 14 साल की उम्र से ही वे क्रांतिकारियों के संदेशवाहक के रूप में पर्चे बांटने का काम करते थे।
स्वतंत्रता संग्राम में एक घटना घटी थी जो क्रांतिकारियों की वीरता का उदाहरण बनी। वह घटना थी दिल्ली की नेशनल असेंबली में भगत सिंह का बम फेंकना।
बम फेंकते वक्त भगत सिंह ने कहा था : 'अगर बहरों को सुनाना हो तो आवाज जोरदार करनी होगी।' इस घटना में बटुकेश्वर दत्त भी भगत सिंह और सुखदेव के साथ थे। इन तीनों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। भगत सिंह और सुखदेव पर कई केस थे इसलिए उन्हें तो फांसी की सजा सुना दी गई।
इधर ब्रिटिश सरकार ने बटुकेश्वर दत्त को उम्र कैद की सजा सुना दी और अंडमान निकोबार की जेल में भेज दिया, जिसे काला पानी की सजा भी कहा जाता है।
काला पानी की सजा के दौरान बटुकेश्वर दत्त पर अंग्रेजों ने बहुत अत्याचार किए जिससे वे मरते-मरते बचे।
जेल में जब उन्हें पता चला कि उनके साथी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई है तो वे काफी निराश हुए। उन्हें इस बात का नहीं था कि उनके तीनों साथी अपनी आखिरी सांसें गिन रहे हैं बल्कि दुख तो इस बात का था कि उन्हें भी फांसी क्यों नहीं दी गई।
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