23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जी हमारे देश की आजादी की खातिर अपनी जान की बाजी लगा गए और आज हम आजाद मुल्क में सांस इन्हीं अमर स्वतंत्रता सेनानी की वजह से ले पा रहे हैं। आइए पढ़ते हैं शहीद राजगुरू जी (Rajguru History In Hindi) के बारे में
शहीद राजगुरू || Shaheed Rajguru
बचपन से ही राजगुरु के अंदर जंग ए आजादी में शामिल होने की ललक थी। वाराणसी में पढ़ाई के दौरान राजगुरु का संपर्क अनेक क्रांतिकारियों से हुआ।
वह चंद्रशेखर आजाद से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनके क्रांतिकारी दल हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से जुड़ गए। उस वक्त उनकी उम्र केवल 16 साल थी।
केवल 16 साल की छोटी सी उम्र में वे अपने करियर के बारे में न सोचकर वे देश की आजादी के बारे में सोच रहे थे।
अब राजगुरू का मकसद बन गया था ब्रिटिश अधिकारियों के मन में खौफ पैदा करना और देश की आजादी के लिए घूम घूमकर लोगों को जागरूक करना।
उन्होंने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की ठानी। जिनकी मौत साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त हुई थी।
अपने साथी भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर उन्होंने दिल्ली में सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर बहरी अंग्रेज सरकार के कानों को खोलने का काम किया।
राजगुरु का खौफ ब्रिटिश प्रशासन पर इस कदर हावी हो गया था कि उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस को विशेष अभियान चलाना पड़ा।
पुलिस अधिकारी की हत्या के बाद राजगुरु कुछ समय नागपुर में रहे। वहीं से पुणे जाते वक्त पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और केवल 22 साल की उम्र में भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी की सजा सुना दी।
मौत की सजा मिलने के बाद सुखदेव और भी खुश रहने लगे और कैदियों को हंसने हंसाने लगे थे। एक बार एक कैदी ने उनसे सीधे पूछ लिया क्या आपको मौत से डर नहीं लगता?
उनका जवाब था, "मैंने जो किया मुझे उस पर गर्व है और इस सच का एहसास मुझे मौत को चैलेंज करने के बाद ही हुआ है। हमारी मौत सार्थक होगी और आने वाले क्रांतिकारियों के लिए पथ प्रदर्शक बनेगी।"
वे अपनी मौत से घबराए नहीं उन्हें यह गर्व था कि पक्के इरादों की वजह से वह अपने देश के लिए कुछ कर पाए।
राजगुरु को अपनी मौत का डर नहीं था बल्कि देश के लिए अपना जीवन काम आने पर गर्व था और वह खुशी-खुशी देश के लिए मर मिटे।
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