राणा सांगा मेवाड़ के योद्धा || Rana Sanga

राणा सांगा मेवाड़ के योद्धा || Rana Sanga

राणा सांगा एक ऐसे वीर योद्धा जिनको सम्पूर्ण भारत वर्ष में पूरे मान सम्मान के साथ उनकी बहादुरी के लिए जाना जाएगा, आइए पढ़ते हैं राणा सांगा कौन थे (rana sanga kaun the)




राणा सांगा मेवाड़ के योद्धा || Rana Sanaga


हिंदू धर्म अपने प्रसिद्ध पराक्रमी प्राचीन इतिहास की वजह से युगों युगों तक जाना जाता रहा है। इसमें भी राजपूत कुल के अनेकों पराक्रमी किस्से मौजूद है। अगर हम भारत के राजपूत कुल का इतिहास पलटकर देखें तो राणा सांगा का नाम सुनहरे शब्दों में सर्वप्रथम लिखा हुआ दिखाई देगा।


राणा सांगा का नाम केवल हिंदू और राजपूत कुल में ही नहीं कई दफा बाबर की जीवनी बाबरनामा में भी लिखा हुआ है जिसमें बाबर ने राणा सांगा को अपने जीवन का प्रेरक और सबसे पराक्रमी योद्धा कहा है। 


राणा सांगा 1509 से 1528 ईसवी तक मेवाड़ के राजा रहे। आज के समय में जिस राज्य को राजस्थान के नाम से जाना जाता है किसी जमाने में वहां राजपूत कुल का राज हुआ करता था। इसी कुल के सबसे पराक्रमी योद्धा राणा सांगा अपनी वीरता और उदारता की वजह से सदैव जाने जाते रहेंगे।


1100 ईसवी से भारत में अनेकों विदेशी आक्रमण हुए और इसमें हिंदू मंदिर बड़े ही बेरहमी से लूट लिए गए। इस तरह के किस्से कहानी और इतिहास को सुनकर राणा सांगा बचपन से ही विदेशी आक्रमण से अपने राज्य की रक्षा करने के लिए तत्पर रहते थे। 


सबसे पहले जब गुजरात, दिल्ली और अन्य इलाकों से मुसलमान राजाओं ने मेवाड़ पर आक्रमण किया तो राणा सांगा ने बड़ी वीरता से उनसे मुकाबला किया और साथ ही होने वाले विदेशी आक्रमण में भाग लेने के लिए सभी राजपूतों को एकजुट किया। 


राणा सांगा ने अपने जीवन में 18 प्रमुख लड़ाइयां लड़ी, जिसमें दिल्ली, गुजरात और मालवा के मुगल शासक शामिल थे।


उनकी सबसे प्रचलित लड़ाई में एक नाम मोहम्मद शाह मांडू का आता है जो लड़ाई में बेरहमी से कत्ल करने की वजह से जाना जाता था।


राणा सांगा ने लड़ाई में उसे जिंदा पकड़ा और घसीटते हुए उसे आपने राज्य लेकर आए।


इसके बाद मोहम्मद के माफी मांगने पर राणा सांगा ने उसे उसका राज्य लौटा दिया जो उनकी वीरता के साथ उदारता को भी दिखाता है। 


इसके अलावा राणा सांगा ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी से दो बार लड़ाई लड़ी जिसमें लोदी को बुरी तरह परास्त किया।


इसके बाद 1526 का वो दिन आता है जब फरगना का राजा बाबर दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर दिल्ली का नया सुलतान बनता है, और तब उसे राणा सांगा और उनके संपन्न राज्य के बारे में पता चलता है।


उनका राज्य इतना संपन्न था की उस वक्त वहां की कमाई 10 करोड़ थी, जितनी दिल्ली की भी नही थी। 


इतने समृद्ध राज्य को जीतने के इरादे से बाबर अपने सेनापति हसन खान को फरवरी 1527 में बयाना के युद्ध के लिए भेजता है जिसमें राणा सांगा का युद्ध हसन खान के साथ होता है और यहां बाबर की सेना बुरी तरह हारती है।


जिसके बाद सांगा की वीरता के किस्से बाबर के महल में गूंजने लगते हैं और बाबर 16 मार्च 1527 को खानवा के मैदान में बाबर और राणा सांगा का युद्ध हुआ जिस युद्ध में बाबर की सेना बड़ी थी


मगर फिर भी राणा सांगा और उनकी सेना ने जमकर सामना किया परिणामस्वरुप मध्य युद्ध में राणा सांगा का एक हाथ और एक आंख जख्मी हो गई मगर इसके बावजूद वह लड़ाई लड़ते रहे और अचानक मूर्छित हो गए। 


राणा सांगा को मूर्छित देख उनके स्थान पर उनका परम मित्र आ गया और राणाजी को उनके मंत्री रणभूमि से दूर लेकर गए जब राणा सांगा को होश आया और उन्हें इसके बारे में मालूम पड़ा तो वह बहुत अधिक क्रोधित हुए और दोबारा लड़ने के लिए जाने लगें इसमें राणा जी के अपने लोगों के बीच तू-तू मैं-मैं शुरू हो गई जिस बीच उनके किसी गद्दार ने उन्हें जहर दे दिया और वे वीर गति को प्राप्त हो गए। 


आचनक उनके साथ हुए इस धोखे के बाद बाबर अपने जीवनी में लिखता है कि – "राणा सांगा जैसा वीर अपने जीवन में आज तक नहीं देखा, अपनी जीवनी में उसने स्पष्ट रूप से यह लिखा है कि अगर बाबर के पास कोई एक व्यक्ति भी राणा सांगा जैसा होता है तो वह पूरे भारत पर विजय प्राप्त कर लेता"। 


हम महान राजपूत योद्धा राणा सांगा को उनकी वीरता और उदारता की वजह से सदैव याद रखेंगे किस प्रकार अपना एक हाथ और शरीर का आधा हिस्सा खोने के बावजूद अपने जमीन के लिए वह लड़ते रहे। यह उन्हें सभी राजपूत योद्धाओं से सर्वोत्तम बनाता है। 


Read Also :


चाणक्य की प्रतिज्ञा



Post a Comment

0 Comments