चाणक्य की प्रतिज्ञा और मौर्य सम्राज्य की स्थापना
चाणक्य जो की एक महान अर्थशास्त्री के रूप में विख्यात रहे थे।
और उन्होंने देश की रक्षा के लिए जिस भी चीज़ का प्रण किया उसे पूरा करके दिखाया।
एक महान दार्शनिक और एक रक्षक के रूप में उन्होंने हमेशा भारत वर्ष की रक्षा की थी।
एक बार की बात है जब हमारा देश सिकंदर के आक्रमण को झेल रहा था, तब चाणक्य ने राजा घनानंद के दरबार में जाकर उनके सामने देश को आक्रमण से देश को बचाने के लिए कुछ विचार प्रस्तुत किए।
लेकिन घनानंद ने चाणक्य को साधारण सा व्यक्ति मानकर पूरे दरबार में उनका अपमान कर दिया, और उन्हें अपने दरबार से बहार निकल दिया।
इस दिन के बाद चाणक्य ने उस समय एक प्रतिज्ञा ली।
और जिसके लिए उन्होंने अपनी शिखा बंधन को खोल दिया और खोलते हुए ये कसम खायी कि "ये शिखा तब ही बांधूंगा जब मैं नन्द वंश की समाप्ति कर दूंगा।"
चाणक्य ने देश के नए सम्राट को खोजने में दिन रात एक कर दिया।
इस दौरान उन्होंने देश में कई यात्राएं की और एक दिन अचानक वे उस स्थान पर पहुंच जाते हैं, जहां बहुत से बच्चे खेल रहे होते हैं।
अत्यधिक थकान के कारण चाणक्य वहीं बैठ जाते हैं और बालको के खेल को देखने लगते हैं।
खेल रहे बालको का झुण्ड एक नाटक का आयोजन कर रहा था, जिसमें कोई बालक अपराधी तो कोई सिपाही बनकर उस नाटक में अपना अभिनय प्रस्तुत कर रहा था।
उनमें से एक बालक के लिए एक सिंहासन का चयन किया गया था जो कि एक टीले पर बनाया गया था।
सिंघासन पर बैठे हुए बालक की छवि बहुत तेजस्वी थी और उस बालक के सामने अपराधियों को सिपाहियों के द्वारा लाया जा रहा था।
बालक उन लाये अपराधियों के मामलो की सुनवाई कर अपना न्याय उन्हें दे रहा था।
उसकी न्यायपूर्ण बातो को सुनकर चाणक्य का हृदय अत्यंत प्रफुल्लित हो उठा।
उन्होंने मन में सोचा मुझे भारत देश के लिए जिस न्यायपूर्ण साम्राट की तलाश थी, वो सभी गुण इस बालक के अंदर है।
अब जाकर मेरी खोज पूरी हुई और अब मुझे इस बालक को देश के साम्राट के रूप में तैयार करना है।
उन्होंने जब बालक से उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम चन्द्रगुप्त बताया और अपनी माता का नाम मुरा बताया। इस कारण उसे सभी लोग चन्द्रगुप्त मौर्या के नाम से जानते थे।
चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को तक्षशिला विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त कराई।
विश्वविद्यालय में पूरे सात साल तक राजनीति और युद्ध की कला में शिक्षित होने के बाद चन्द्रगुप्त मौर्या ने पूरे यूनानियों को देश से भगा दिया।
और उनके ही द्वारा पूरे नन्द वंश की समाप्ति हुई।
इस प्रकार नन्द वंश की समाप्ति के साथ चंद्रगप्त मौर्य नए शासक के रूप में सम्मानित किए गए।
इस प्रकार चाणक्य की प्रतिज्ञा पूरी हुई और उन्होंने अपनी खुली शिखा को बांध लिया।
चंद्रगुप्त ने भी चाणक्य को अपने राज्य में सबसे वरिष्ठ पद पर निर्वाचित किया, जिस कारण भारत में मौर्या वंश की स्थापना हुई और ये शासन लम्बे समय तक रहा।
0 Comments
If you have any doubts let me know and thanks for giving your valuable time to visit my site.