"मलते रह गए हाथ शिकारी
उड़ गया पंछी तोड़ पिटारी
अंतिम गोली खुद को मारी
जिओ तिवारी जनेऊ धारी"
"मैं आजाद था, आजाद हूं और आजाद ही रहूंगा"
चंद्रशेखर आजाद
(Chandrashekhar Azad)
चन्द्रशेखर आज़ाद के बारे में ये चंद पंक्ति ही उनकी असीम राष्ट्रभक्ति को बखूबी बताती है। आइए पढ़ते हैं चन्द्रशेखर आज़ाद जी के बारे में :
आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों के साथ एक प्रदर्शन में शामिल होने पर पुलिस ने 14 साल के एक बच्चे को गिरफ्तार कर लिया और उसे जज के सामने पेश किया गया।
यहां जज ने उस बच्चे से उसका नाम पूछा तो पूरी दृढ़ता से उस बच्चे ने जवाब दिया मेरा नाम आजाद है पिता का नाम पूछने पर जोर से बोला स्वतंत्रता और पता पूछने पर बोला जेल। इस पर जज नाराज हो गया
और बच्चे को सरेआम 15 कोड़े लगाने की सजा सुनाई जब उस बच्चे की पीठ पर कोड़े बरस रहे थे तो उसके मुंह पर कोई शिकन नहीं थी वह तो बस एक स्वर में वंदे मातरम कहे जा रहा था। यह बच्चा चंद्रशेखर आजाद के नाम से पहचाना जाने लगा।
यह वही चंद्रशेखर आजाद थे जिनके नाम मात्र से अंग्रेजी पुलिस कापने लगती थी।
चंद्रशेखर आजाद ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर सांडर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था। उन्होंने सरकारी खजाने को लूटकर क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना शुरू कर दिया।
उनका मानना था कि यह धन भारतीयों का ही है जिसे अंग्रेजों ने लूटा है। राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी ट्रेन कांड (1925) में सक्रिय भाग लिया था।
चंद्रशेखर आजाद कहते थे कि दुश्मन की गोलियों का हम सामना करेंगे आजाद ही रहे हैं आजाद ही रहेंगे उनके इस नारे को हर क्रांतिकारी युवा रोजगार आता था वह जिस चांद से मंच से बोलते थे हजारों युवा उनके साथ देश के लिए जान लुटाने को तैयार हो जाते थे।
7 फरवरी 1931 के दिन चंद्र शेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने एक साथी के साथ बैठकर विचार विमर्श कर रहे थे कि तभी वहां अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया चंद्रशेखर आजाद ने अपने दोस्त को तो भगा दिया पर खुद अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे।
अंत में अंग्रेजों की एक गोली उनकी जांघ में लग गई। आजाद की बंदूक में एक गोली ही बची थी।
चंद्रशेखर आजाद ने पहले ही यह प्रण किया था कि वह कभी भी जिंदा पुलिस के हाथ नहीं आएंगे।
इसी प्रण को निभाते हुए उन्होंने वह बची हुई गोली खुद को मार ली। पुलिस के अंदर चंद्रशेखर आजाद का इतना भय था कि किसी की भी उनके मृत शरीर के पास जाने तक की हिम्मत नहीं हुई। उनके शरीर पर गोली चलाकर और पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही पुलिस चंद्रशेखर आजाद के पास गई।
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