'आंध्र केसरी' प्रकाशम पांटुलु | Andhra Kesari Kon The

'आंध्र केसरी' प्रकाशम पांटुलु | Andhra Kesari Kon The

1928 में जब साइमन कमीशन मद्रास पहुंचा तो वहां उसे विरोध कर रही भीड़ के साइमन गो बैक के नारों का सामना करना पड़ा। शहर के प्रमुख चौक पर प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाई और एक युवा आंदोलनकारी की मौके पर ही मौत हो गई। जुलूस का नेतृत्व कर रहे नेता जब मारे गए युवक की पहचान करने उसके शव के पास पहुंचे तो पुलिस ने उन पर बंदूकें तान दी।
 


'आंध्र केसरी' प्रकाशम पांटुलु

(Andhra Kesari Kon The)


उसी भीड़ में से एक व्यक्ति ने आगे बढ़कर अपने कोट के बटन खोले और पुलिस की बंदूक के सामने अपना सीना तानकर खड़ा हो गया और बोला, "मुझे गोली मारो।" 


उसकी इस बहादुरी से पुलिस अधिकारी ने अपनी रिवाल्वर वापस रख ली। भीड़ ने जोर-जोर से चिल्ला कर कहा ' आंध्र केसरी की जय।'


वे बहादुर व्यक्ति थे तंगुतुरी प्रकाशम पांटुलू, जिन्हें तब से लोग 'आंध्र केसरी' कहने लगे।


गांधी जी के आह्वान पर प्रकाशम ने 1921 में वकालत छोड़ दी और एक अंग्रेजी दैनिक अखबार 'स्वराज्य' शुरू किया। 


यह दक्षिण भारत के देशभक्तों के लिए आजादी की लड़ाई का हथियार बन गया। 


प्रकाशम ने नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई और अपने साथ लगातार युवा क्रांतिकारियों को जोड़ते रहे।


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