हेमू कालाणी | Hemu Kalani Kon The

हेमू कालाणी | Hemu Kalani Kon The

शहीद भगत सिंह के बलिदान और साहस से प्रेरणा लेकर देश के कोने कोने में हजारों नौजवान अपनी जान हथेली पर लेकर अंग्रेजों से लड़ने निकल पड़े थे। उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण नाम है शहीद हेमू कालाणी का।



आजादी के मतवाले : हेमू कालाणी
(Unsung Freedom Fighter : Hemu Kalani)


भगत सिंह के रास्ते पर चलने का जज्बा इनमें 7 साल की उम्र से ही आ गया था। केवल 19 साल की उम्र में जी हां! उस उम्र में जो आज के बच्चे स्कूल पास करके कॉलेज में एडमिशन ले रहे होते हैं। उस उम्र में 23 जनवरी 1943 को वीर हेमू कलानी हंसते-हंसते आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। 


जब वे 7 साल के थे, उन्होंने भगतसिंह की कुर्बानी के बारे में पहली बार सुना था। उसके बाद से हेमू गांव की गलियों में अपने दोस्तों के साथ तिरंगा झंडा लिए देश प्रेम के गीत गाते और भारत माता की जय के नारे के साथ लोगों में जोश भरने का कार्य करते थे।


7 साल की उम्र में वे अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी दल बनाकर उनका नेतृत्व करते। 


उनका गीत था -


"कौमी झंडा फहराए फर फर, 

दुश्मन का सीना का पर थरथर 

आया विजय का जमाना चलो शेर जवानों!!"


इस गीत को गाते हुए अपने गांव की गलियों में घूमते और फांसी के फंदे को अपने गले में डालकर क्रांतिकारियों को याद किया करते। जब कोई उनसे पूछता कि ऐसा क्यों करते हो? तो उनका जवाब होता था ऐसा करने पर हमारे अंदर देश के लिए मर मिटने का जज्बा पैदा होता है। 


मैं भी भगत सिंह की तरह देश की खातिर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक जाना चाहता हूं। हेमू का पूरा परिवार देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत था। उन्हें बचपन में भगतसिंह जैसे महान क्रांतिकारियों के किस्से कहानी सुनाई जाती थी। इससे वे बहुत प्रभावित हुए थे देश पर कुर्बान होने की भावना, उनमें बचपन से ही उत्पन्न हो चुकी थी। 


हेमू को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ छापामार गतिविधियों, वाहनों को जलाने व क्रांतिकारी जुलूसो में शामिल जैसे क्रांतिकारी के तौर पर पहचाना जाने लगा था। 


1942 में जब महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया तो हेमू अपने साथियों के साथ बड़े जोश के साथ उसमें कूद पड़े।


आगे जब इस आंदोलन से जुड़े महात्मा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार जैसे क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया तो इस आंदोलन की ज्वाला और भड़क उठी थी।


अक्टूबर 1942 में जब हेमू को पता चला की अंग्रेजों का एक दस्ता हथियारों से भरी ट्रेन को लेकर उनके नगर से गुजरने वाला है तब उन्होंने अपने साथियों के साथ पटरी की फिश प्लेट खोलकर रेल को पटरी से उतारने का एक प्लान बनाया।


वे अपने साथियों के साथ इस काम को अंजाम दे रहे थे कि अंग्रेजों ने उन्हें देख लिया। हेमू ने जब अंग्रेज अधिकारियों को अपने पास आते देखा तो उन्होंने अपने सभी साथियों से भागने को कहा लेकिन खुद वहीं खड़े रहे उनके सभी साथी भाग चुके थे लेकिन अंग्रेज सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।


यह पहली बार था जब वो अंग्रेजों के हाथ आए थे। पहले से ही ब्रिटिश सरकार उनके कार्यों से 

 थी। उन पर इस घटना को लेकर मुकदमा चलाया गया। अंग्रेज सिपाहियों ने हेमू को जेल के अंदर बहुत प्रताड़ित किया। 


वे उनसे उनके साथियों के नाम उगलवाना चाहते थे। मगर काफी यातनाएं झेलने के बाद भी हेमू ने मुंह नहीं खोला। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कई सारे प्रलोभन भी दिए। इसके बावजूद उन्होंने अपने दोस्तों का नाम नहीं बताया।


अंत में उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। इस नौजवान क्रांतिकारी को 19 साल की उम्र में 23 जनवरी 1943 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।


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