आलस का नतीजा | Moral Story In Hindi

आलस का नतीजा | Moral Story In Hindi

आलस ही वो एक बेहुदा चीज़ है जो हमें कामयाब नहीं होने देती। आइए पढ़ते हैं Moral Story In Hindi


आलस का नतीजा
(Moral Story In Hindi)


राम बाबू बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्हें गांव में लोग प्यार से बाबू जी कहते थे।


बाबू जी हर बार की तरह इस बार भी रेगिस्तान के इलाके से व्यापार करने जा रहा था…


बाबू जी की बस एक ही कमजोरी थी कि वो negative बहुत ही ज्यादा सोचते थे।


वो हर दम कुछ न कुछ नुस्ख निकालते ही रहते थे। कभी ये कम तो कभी वो कम…


रेगिस्तान में बाबू जी की पानी बोतल खाली थी और बाबू जी को बड़ी ही जोर से प्यास लग रही थी…


रेगिस्तान पार करके के लिए अभी एक लंबा सफर तय करना था। 


बाबू जी को जब काफी इधर उधर देखने के बाद भी पानी कहीं नजर नहीं आता तो वो जोर जोर से आसमान की तरफ देखकर चिल्लाने लगते हैं…


और गुस्से में बाबू जी बोलते हैं भगवान ये कैसी जगह बना दी न पानी है न ही कोई पेड़।


कितनी खराब जगह है रास्ता भी बहुत लम्बा है… 


अगर मेरे पास बहुत सारा पैसा और संसाधन होता न तो मैं इस जमीन को स्वर्ग बना देता….लेकिन अफसोस होता है ऊपर वाले तूने कुछ न करा।


फिर बाबू जी wait करने लगते हैं जैसे मानो बाबू जी भगवान जी के बोलने की wait कर रहे हो।


बाबू जी के नीचे देखते ही एक करिश्मा होता है। उसके सामने एक लबालब पानी से भरा हुआ कुआं आ जाता है।


बाबू जी बहुत घबरा जाते हैं क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले वहां कुछ भी नहीं था…


बाबू जी negative सोच वाले तो थे ही। अब कहने लगे कुआं तो de दिया हे ऊपर वाले। लेकिन पानी निकालने के लिए तो कुछ भी दिया…. मैं भला पानी कैसे निकालूंगा।


नीचे देखा तो करिश्मा हुआ। रस्सी और बाल्टी हाजिर हो चुके थे…


बाबू जी फिर से चिल्लाने लगे और कहने लगे अरे! यार अब मैं पानी लेकर कैसे जाऊंगा???


बाबू जी ने नीचे पीछे मुड़कर देखा तो ऊंट खड़ा था।


यानी जाने की व्यवस्था भी हो चुकी थी।


बाबू जी अब तक बहुत जरूरी ज्यादा घबरा चुके थे। उनके पसीने छूट रहे थे।


सारी चीजे बाबू जी की समझ से हटकर हो रही थी।


बाबू जी भाग खड़े हुए और भागते भागते रेगिस्तान भी पार कर गए।


अगर बाबू जी चाहते तो रेगीस्तान को हरा भरा भी बना सकते थे लेकिन ऐसा उन्होने किया नहीं।


सीख
(Moral Of The Story)


Negative मत सोचों और शिकायतें बनाना छोड़ दो। जिम्मेदारी से मत भागो जिम्मेदारी तो निभानी पड़ेगी ही पड़ेगी। उससे बचकर कहां जाओगे मेरे दोस्त।


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