अल्बर्ट आइंस्टाइन | Albert Einstein Biography In Hindi

अल्बर्ट आइंस्टाइन | Albert Einstein Biography In Hindi

1944 में उन्होंने अपने 'सापेक्षता के सिद्धांत' को हाथ से लिखा और उसे नीलामी के लिए रख दिया….

इस नीलामी से 60 लाख डॉलर की धनराशि जुटाई गई, जो आइंस्टीन ने वर्ल्ड वॉर फंड को दान कर दी, लेकिन आइंस्टीन को बहुत पीड़ा हुई, जब जापान पर परमाणु बम का प्रयोग किया गया, क्योंकि उनका नाम परमाणु युग के प्रारंभ से जुड़ा हुआ था


अल्बर्ट आइंस्टाइन 

(Albert Einstein Biography In Hindi)


अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी में हुआ था। पिता हरमैन आइंस्टीन म्यूनिख में एक व्यापारी थे। 

जब आइंस्टीन 6 साल के थे तब उन्होंने घर पर धार्मिक वायलिन की शिक्षा लेनी शुरू की थी। 

आइंस्टीन एक सामान्य लड़के थे जो पढ़ाई में कोई बहुत अच्छे नहीं थे। उनकी गणित और कैलकुलस में विशेष रूचि थी। 

1895 में आइंस्टीन का परिवार इटली के मिलान चला गया जबकि वह अपनी पढ़ाई की खातिर वहीं रुक गए।

आइंस्टीन ने ज्यूरिक के स्विच फेडरल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी की प्रवेश परीक्षा दी और असफल हो गए।

दोबारा परीक्षा दी और भौतिक शास्त्र और गणित की पढ़ाई करने के लिए उस इंस्टिट्यूट में प्रवेश पाने में सफल रहे। 

आइंस्टीन भौतिक और गणित के एक शिक्षक के रूप में ग्रेजुएट हुए। वह स्विस नागरिक बन गए और बर्न में टेक्निकल असिस्टेंट के रूप में स्विस पेटेंट कार्यालय में नौकरी करने लगे।

आइंस्टीन ने सैद्धांतिक भौतिकी में अपना अनुसंधान जारी रखा और 1903 में अपनी प्रेमिका मिलेवा मैरिक से शादी कर ली। 

1905 में उन्होंने आणविक आयामों पर एक शोर प्रकाशित कराया, जिसके लिए ज्यूरिख विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की। 

1905 में आइंस्टीन की महत्वपूर्ण उपलब्धि उनका सापेक्षता का सिद्धांत था जिसने स्थान और समय के अब तक के सिद्धांतों को छिन्न-भिन्न कर दिया। 

बाद में आइंस्टीन ने पराग्वे और ज्यूरिख में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। 1915 में वह अपनी पत्नी और बेटों हैंस अल्बर्ट और एडुअर्ड के साथ बर्लिन चले गए। 

आइंस्टीन ने प्रशियन अकेडमी आफ साइंस ज्वाइन कर ली। साथ ही बर्लिन विश्वविद्यालय में अपना शोध भी जारी रखा। 

मिलेवा अपने दोनों बेटों के साथ वापस स्विट्जरलैंड लौट गई।

1919 में दोनों ने तालाक ले लिया और आइंस्टीन ने अपनी कजिन एल्सा लावेंथल से शादी कर ली।

1919 में रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन ने आइंस्टीन के सिद्धांतों की पुष्टि की और वह रातों-रात अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हो गए। 

उन्होंने दक्षिणी अमेरिका यूरोप एशिया और मध्य पूर्व की यात्राएं की और वहां सापेक्षता के सिद्धांत पर व्याख्यान दिए। 

वह शांतिवाद, उदारवाद और इजराइल में यहूदियों के लिए एक राज्य की स्थापना के समर्थक थे। 

1921 में आइंस्टीन पहली बार अमेरिका गए। 

1921 में आइंस्टीन को भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कमेटी के शब्दों में उन्हें ‘फोटो इलेक्ट्रिक लो और सैद्धांतिक भौतिकी में उनके कार्य’ के लिए सम्मानित किया गया। 

1920 से ही इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और गुरुत्वाकर्षण बल आइंस्टीन को सम्मोहित कर रहे थे यद्यपि उनका यह सपना अधूरा ही रहा। 

आइंस्टीन ने भौतिकी में एक अकेला सिद्धांत या गणित में एक सूत्र लाने का प्रयास किया जो पदार्थ के सार्वभौमिक विशेष गुणों और ऊर्जा में संबंध स्थापित कर सके। 

आइंस्टीन सेमिनार और सम्मेलनों में भाग लेने के लिए लगातार यात्राएं कर रहे थे। 

उन्होंने अपनी आखिरी बड़ी वैज्ञानिक खोज पदार्थ और तरंगों के संबंध पर की।

उन्हें रॉयल सोसाइटी के कोप्ले मेडल और रॉयल एस्टॉनोमिकल सोसायटी के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। 

1928 में बहुत अस्वस्थ होने के कारण आराम की सलाह दी गई। 1930 में आइंस्टीन पूरी तरह ठीक हो गए और यात्राएं फिर शुरू कर दी। 

उन्होंने पहले से कई अधिक शांतिवाद को समर्थन दिया और एडोल्फ हिटलर के नेतृत्व में नाजियों से बढ़ते खतरे के बारे में चेताया। 

आइंस्टीन ने 1932 में जिनेवा में हुए विश्व निशस्त्रीकरण सम्मेलन की असफलता की खुलकर आलोचना की। 

आइंस्टीन को न्यू जर्सी के प्रिंसटन के इंस्टीट्यूट आफ एडवांस स्टडी में एक पद का प्रस्ताव दिया गया। व्यवस्था यह थी कि छह-छह महीने वह प्रिंसटन और बर्लिन में बिताएंगे। 

1932 के अंत में जब आइंस्टीन अपने दौरे पर अमेरिका में थे, हिटलर जर्मनी का चांसलर बन गया। 

आइंस्टीन ने इसकी सार्वजनिक निंदा करते हुए अपनी जर्मन नागरिकता त्याग दी। 

उन्हें इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडीज में पूर्णकालिक पद का प्रस्ताव दिया गया और वह फिर कभी जर्मनी नहीं लौटे।

उन्होंने वैज्ञानिकों को अपने साथ जोड़कर भविष्य में परमाणु बम के उपयोग को रोकने के पक्ष में जनमत तैयार करने की मुहिम शुरू कर दी। 

आइंस्टीन का स्वास्थ्य गिरने लगा और उन्हें काफी समय अस्पताल में बिताना पड़ा… उन्होंने अपनी वसीयत तैयार करने की व्यवस्था की और अपने शोध पत्रों संपत्ति और धन को विभिन्न संस्थाओं और संगठनों को दान करने की तैयारी भी की। 

अल्बर्ट आइंस्टीन अंतरराष्ट्रीय शांति के समर्थक थे। 18 अप्रैल 1955 को उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने हमेशा के लिए विज्ञान का चेहरा बदल दिया और उसे दुनिया के सपने देखे, जिसमें कोई हिंसा, जातिवाद और भेदभाव न हो। 

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