भाई मतिदास एक अनसुनी सच्ची कहानी

भाई मतिदास एक अनसुनी सच्ची कहानी

भाई मतिदास कौन थे

(Bhai Matidas Ki Amar Kahani) 


भाई मतिदास सिख इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शहीदों में से एक थे। इनका जन्म झेलम जिले के करियाला गाँव में हुआ था, जो कि वर्तमान समय में पाकिस्तान में स्थित है।


भाई मतिदास ब्राह्मण परिवार से थे। भाई मतिदास के पिता का नाम भाई प्रगा था। भाई मतिदास भाई प्रगा के सबसे बड़े पुत्र थे। भाई मतिदास और उनके छोटे भाई भाई सती दास और भाई दयाला जी नौवें गुरु तेगबहादुर जी के साथ शहीद हुए थे।


भाई मतिदास गुरु तेगबहादुर के बहुत करीबी थे। भाई मतिदास और उनके छोटे भाई, भाई सतीदास और भाई दयाला को "भाई " का सम्मान स्वयं गुरु गोविन्द सिंह जी के द्वारा इन शहीदों और पंज प्यारो को दिया था।




गुरु तेगबहादुर के साथ भाई मतिदास और उनके भाई को भी जंजीरों में जकड़कर गिरफ्तार कर लिया गया था।

औरंगजेब चाहता था कि गुरु तेगबहादुर और भाई मतिदास इस्लाम धर्म अपना लें, लेकिन भाई मतिदास इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं करना चाहते थे।


औरंगजेब के आदेश के अनुसार गुरु तेगबहादुर का सिर काट देना था लेकिन औरेंगजेब के काजीयों ने सोचा कि जब गुरु तेगबहादुर के सामने भाई मतिदास और उनके भाई सती दास और भाई दयाला को यातना दी जायेगी तो इस यातना से उनके पीड़ा और भाग्य के संकल्प को हिला सकती है और वो इस्लाम धर्म को अपनाने के लिए राजी हो जाएंगे।


इसलिए सबसे पहले भाई मतिदास को चुना गया उन्हें जंजीरों में जकड़कर दिल्ली के चांदनी चौक ले जाया गया।


भाई मतिदास बिलकुल शांत और उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान भी थी। उनको मृत्यु का कतई भी भय न था। चांदनी चौक पर पहले से ही काफी भीड़ थी और भाई मतिदास को भारी पहरेदारी से लाया गया था।


जहाँ भाई मतिदास को फांसी दी जाने वाली थी वहां पहुंचते ही एक काजी ने पूछा… "हे वीर जवान थोड़ी बुद्धि का इस्तेमाल करो और इस्लाम धर्म स्वीकार कर लो क्यों अपने युवा जीवन को तबाह करना चाहते हो?


इस्लाम स्वीकार करो और तुम्हें शासक वर्ग में से पद दिया जाएगा। तुम्हारे पास धन और उच्च पद होगा। तुम्हें जन्नत मिलेगी। तुम शांति और आनंद से जीवन जी सकते हो। अगर तुम इस्लाम स्वीकार नहीं करते, तो तुम्हें यातना देकर मार दिया जाएगा। सोच समझकर चयन करें।"


भाई मतिदास ने कहा "क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हो! मैं अपने विश्वास को त्यागने के बजाय मरना पसंद करूँगा मैं इस्लाम कभी भी स्वीकार नहीं करूँगा।" जल्दी करो।


काजी ने बोला "जैसी तुम्हारी इच्छा लेकिन क्या मरने से पहले तुम्हारी कोई आखिरी इच्छा है, जिसे तुम पूरा करना चाहते हो?


भाई मतिदास ने कहा "हाँ मुझे मेरे गुरु के मुँह के सामने खड़ा करो मैं अपने जीवन के अंतिम क्षणों में देखना चाहता हूँ "भाई मतिदास की आखिरी इच्छा पूरी की गयी और उन्हें उनके गुरु के सामने लकड़ी के सीधे समान दो लट्ठे के बीच रस्सी से कसकर बाँध दिया गया और उनके सिर पर एक आरा रख दिया गया और आगे पीछे किया गया फिर भाई मति दास के सिर से खून बहकर मुँह तक आ गया लेकिन भाई मतिदास के चेहरे पर थोड़ी सी भी सिकन ना थी।


उनके चेहरे पर थोड़ी सी भी पीड़ा ना थी। उनके शरीर को दो भागों में काट दिया गया। भाई मति दास को दिल्ली के चांदनी चौक में 09 नवम्बर 1675 को आरे से चीरा गया था।


भाई मतिदास के छोटे भाई भाई सती दास और भाई दयाला जी को भी गर्म पानी में उबालकर और रुई में लपेटकर जलाया गया। 


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