यशस्वी जयसवाल की जीवनी | Biography Of Yashasvi Jaiswal In Hindi

यशस्वी जयसवाल की जीवनी | Biography Of Yashasvi Jaiswal In Hindi

टेंट में रहने से लेकर क्रिकेट स्टार बनने तक का सफर यशस्वी जयसवाल ने कैसे पूरा किया???


यशस्वी जयसवाल की संघर्षों से भरी हुई सफ़लता की कहानी कैसे हुई सफल ??? ये सब जानेंगे आज अपने इस नए ब्लॉग में...तो चलिए शुरू करते हैं....

Yashasvi Jaiswal Ka Jivan Parichay 


यशस्वी जयसवाल की जीवनी

(Biography Of Yashasvi Jaiswal In Hindi)


यशस्वी आज क्रिकेट की गलियों में जाना पहचाना एक बड़ा नाम है ; लेकिन यह  कामयाबी उन्हें काफी मेहनत और संघर्षो के बाद मिली है ।


उत्तर प्रदेश के भदोही शहर के रहने वाले यशस्वी का जीवन काफ़ी गरीबी में बीता था  लेकिन एक क्रिकेटर बनने की चाह उनमें इस कदर थी  की सिर्फ 11 वर्ष की उमर में वह मुंबई आ गए थे। 


यहां  उनका जीवन बोहोत संघर्षो के साथ बीत रहा था। 


जब वह क्रिकेट खेलने मैदान में आए तो उन्हें एक छोटे से काम को करना पड़ा; जैसे कि उन्हें पहले सिर्फ बॉल ढूंढने का काम दिया गया था।


आजाद मैदान में अक्सर होता था कि क्रिकेट खेलते वक्त बोल खो जाया करती थी और यशस्वी को बॉल ढूंढने के लिए कुछ रुपए मिलते थे। फिर उन्हे एक दिन अपनी की हुई मेहनत का फ़ल मिल ही गया। 


एक दिन यशस्वी आजाद मैदान में क्रिकेट खेल रहे थे तो कोच ज्वाला सिंह की नजर उन पर  पड़ी।


फिर ज्वाला सिंह ने उनका हुनर पहचाना और उन्हे क्रिकेट सिखाया। 


तभी से वह यशस्वी को स्वयं क्रिक्रेट की ट्रेनिंग देने लगे।


आज यशस्वी एक बड़े क्रिकेटर है और उनके बेहतर क्रिकेटर बनने में सबसे बड़ा हाथ कोच ज्वाला सिंह का ही है।


यशस्वी जायसवाल अपने बारे में बताते हैं कि – मैंने अपना घर 11 वर्ष की उम्र में ही छोड़ दिया और मुंबई आ गया था।


यहां मैं कुछ दिनों के लिए एक डेरी में रहा ;  जिसका नाम था कालबादेवी लेकिन कुछ दिन रहने के बाद मुझे वो जगह छोड़नी पड़ी।


उसके बाद मुझे एक जान पहचान वाले एक अंकल मिले उन्होने मेरी रहने मे मदद की। 


उन्होंने मेरे रहने के लिए एक मुस्लिम यूनाइटेड क्लब से बात की और आजाद मैदान के ग्राउंडस कीपर्स के साथ मुझे रहने के लिए जगह दी।


उस टेंट हाउस में रहते हुए मुझे 3 साल हो चुके थे और वह समय मेरे लिए काफी कठिन रहा था।


उस समय मेरे पास कुछ ज्यादा पैसे नहीं हुआ करते थे जिस कारण मुझे कभी-कभी खाली पेट भी सोना पड़ा।


मैं उन दिनों को कभी भूल ही नहीं सकता क्योंकि उन दिनों ने ही तो मुझे दिमागी तौर पर बहुत मजबूत बनाया है।


मैंने अपना सारा समय क्रिकेट को दिया और कड़ी मेहनत की।


मुझे खुद पर पूरा विश्वास था कि मेरी मदद कोई और नहीं मैं स्वयं कर सकता हूं।


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