जगतगुरु रविदास जी की जीवनी | Biography Of Guru Ravidas In Hindi

जगतगुरु रविदास जी की जीवनी | Biography Of Guru Ravidas In Hindi

हमारे देश में कई महान महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिनकी ख्याति आज भी लोगो की जुबान पर है। आइए आज उन्हीं में से एक महान संत सतगुरु रविदास जी के बारे में जानते हैं

 


गुरु रविदास जी की जीवनी

(Guru Ravidas Biography In Hindi)


संत रविदास जी का सम्पूर्ण जीवन ही मानव मात्र के लिए एक अनुपम उदाहरण है। भारत के उन महापुरुषों में से रविदास जी हैं जिनके वचन सिर्फ और सिर्फ देश के प्रति अपने प्रेम को दर्शाते हैं।


इन्होंने अपने दिए गए आध्यात्मिक वचनों के माध्यम से सम्पूर्ण संसार को आत्मज्ञान, एकता तथा भाईचारा बनाकर रखने के लिए जोर दिया। 


कई राजा और रानियाँ जगतगुरु रविदास जी के प्रभाव और भाषा के प्रकाश से इतने मोहित हुए कि उन्होंने उनसे जुड़कर भक्ति के मार्ग को अपना लिया। 


जगतगुरु रविदास जी अपने पूरे जीवन भर समाज के अन्दर फैली हुई कई कुरीतियों को समाप्त करने के लिए प्रयासरत रहे। जैसे जात पात के भेद को लेकर वे सदा ही प्रयास करते रहे। 


रविदास जी से सद्गुरु का सफर

(Ravidas Jivani In Hindi)


रविदास जी के साथ कई लोग जुड़े और उन्होंने  इनको “सतगुरु”, “जगतगुरु” नाम देकर उनका सत्कार किया। रविदास जी ने अपनी शरण में आये करोड़ों लोगो का उद्धार अपनी दया दृष्टि  से किया।


रविदास जी का जीवन परिचय

(Ravidas Kaun The)


संत रविदास जी का जन्म सीर गोवर्धनपुर, वाराणसी, यू.पी. में रविवार संवत 1433 को हुआ था। इनका जन्म काशी में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था।


गुरु जी के पिता का नाम रग्घु तथा उनकी माता जी का नाम घुरविनिया था। गुरु जी का विवाह लोना नाम की युवती से हुआ था। 


शुरू से ही इनको साधु संतों की संगति पसंद थी और उनके साथ से रविदास जी ने पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान को ग्रहण किया था। 


रविदास जी का मुख्य व्यवसाय जूते बनाने का था, रविदास जी अपने सभी कार्य को बहुत ही लगन और परिश्रम से करते थे। संत रविदास जी की 1540 में वाराणसी में मृत्यु हुई थी।


संत रविदास जी की परोपकारी भावना

(Sant Ravidas)


अक्सर वे बिना किसी मूल्य को लिए ही जूते दे दिया करते थे। इस कारण उनके माता और पिता नाराज होते थे और एक दिन संत रविदास जी और उनकी wife को घर से बाहर निकाल दिया था। 


घर से निकाले जाने के बाद उन्होंने पड़ोस में ही एक अलग घर बनाया और अपना व्यवसाय वहाँ से शुरू किया और बचे हुए समय में वे ईश्वर भजन और उनके ध्यान में लीन रहते थे।


संत रविदास जी की शिक्षा और उसके लिए प्रयास

(Sant Ravidas Education)


संत रविदास जी बहुत ही बुद्धिमान थे लेकिन उस समय के कुछ उच्च  जाति के लोगो ने उन्हें पाठशाला आने से रोक दिया, लेकिन गुरु पंडित शारदानंद जी को ये आभास हो गया कि ये कोई साधारण बालक नहीं है और उन्होंने रविदास जी को उनके अध्ययन में भरपूर सहयोग दिया।  


गुरु पंडित शारदानंद के बेटे से उनकी अच्छी मित्रता थी। उन्होंने अपने मित्र की मित्रता को भरपूर निभाया था।


जबकि उसकी मृत्यु हो गयी थी लेकिन रविदास जी के कहे कुछ वचनो ने उनके मित्र को मौत की नींद से भी जगा दिया था, कयोंकि उनके साथ खेले जाने वाला खेल अभी अधूरा था और उसको पूरा करना बहुत जरुरी था। 


इस तरह के कई चमत्कार उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन में किये और लोगो को प्रभावित किया।


संत रविदास जी के गुरु और उनके शिष्य

(Sant Ravidas ke Guru Kaun The)


गुरु जी को समय का विशेष ध्यान रहता था और उसी के अनुसार ही काम को पूरा करने पर ध्यान देते थे।


संतो की संगति में ही उन्हें संत रामानन्द का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और उनके शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान का अर्जन किया। 


वैसे उनके गुरु कबीरदास जी थे और उनके कहने पर उन्होंने संत रामानंद को अपना गुरु बनाया था।


अपने प्रारम्भिक समय से ही गुरु जी का व्यवहार बहुत ही मधुर था और उनके साथ जुड़े लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। 


अपने ह्रदय से अति परोपकारी और दयालु थे। संत रविदास जी को दूसरो की सहायता करने में बहुत रूचि रहती थी।


उन्हें साधु और संतो की सहायता करके बहुत आनंद मिलता था। इनकी प्रमुख शिष्य मीराबाई थी जो इनके साथ जुड़कर अध्यात्म से जुड़ गयी थी। 


संत रविदास जी की जयंती का पर्व 

(Ravidas Jayanti Parv)


संत रविदास जयंती को मुख्य रूप से हमारे पूरे देश में मनाया जाता है। उनकी जयंती को प्रत्येक साल में आने वाली माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।


इस दिन कई जगह कीर्तन, जुलुस और कई भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। 


उनको अनुसरण करने वाले कई लोग तो गंगा नदी या अन्य पवित्र स्थानों में पवित्र स्नान भी करते हैं।


वाराणसी में इस दिन कई लोगों द्वारा श्री गुरु रविदास के जन्म स्थान “सीर गोवर्धनपुर” में कई तरह के भव्य उत्सव का आयोजन कराते हैं। कई लोग दूसरे देशों से आकर भी यहाँ इस समारोह में भाग लेते हैं।



संत रविदास जी का सामाजिक मुद्दों में स्वरुप 

(Sant Ravidas Samajik Muddon Mein Swarup)


संत रविदास संत ने लोगो को कई महान शिक्षाएं दी थी। उनके अनुसार कर्मो को महत्ता देनी चाहिए न कि जाति, धर्म को देनी चाहिए। उन्होंने समाज में फैली अस्पृश्यता की व्यवस्था के खिलाफ भी काम किया, जो निम्न जाति के लोगों के लिए उच्च जाति के लोगों द्वारा की जाती थी। 


उन्होंने कई और कार्य जैसे ईश्वर की प्रार्थना के लिए मंदिरों में निम्न जाति के लिए प्रतिबंधित,  उनको अध्ययन के लिए स्कूलों में न जाने देना, गांव में किसी तरह यात्रा पर प्रतिबंधित, गाँव में घर के बजाय झोपड़ियों में रहने के लिए विवश करने से सम्बंधित आदि बातों के खिलाफ कार्य किया और अपने आध्यत्मिक शब्दों और संदेश से जन मानस को बदलने का प्रयास किया।


रविदास जी का योगदान

(Sant Ravidas Yogdaan)


रविदास जी कुछ समय पश्चात् भगवान राम के  अनुयायी बने और अपने जीवन को  भगवान के प्रति लगा दिया और अपनी आस्था को व्यक्त करने के लिए राम, रघुनाथ, राजा राम चंदा, कृष्ण, हरि, गोबिंद और कई शब्दों का प्रयोग कर अपनी भक्ति का उदाहरण दिया। 


रविदास जी के कई पद, भक्ति गीत, और कई तरह के लेखन जो कि लगभग 41 छंद के रूप में है। उनके सीखो के धर्मग्रंथों में वर्णित किया गया हैं, सिखो के पांचवे गुरु देव अर्जन देव द्वारा संकलित किए गए थे।  


गुरु रविदास जी को अनुसरण और शिष्यों को आमतौर पर रविदासिया कहा जाता है। जिन शिक्षाओं का संग्रह संत रविदास जी के शिष्य और अनुयायी करते है उस पंथ को रविदासिया पंथ कहा जाता है।


रविदासिया पंथ के कुछ पवित्र और प्रभावी 41 लेखन जिन्हे  गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया है वो इस प्रकार है - “राग – सिरी, गौरी, आसा, गुजरी, सोरठ, धनसारी, जैतसारी, सुही, बिलावल, गौंड, रामकली, मारू, केदार, भैरु, बसंत और मल्हार।


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