सरदार वल्लभ भाई पटेल : लौह पुरुष | Biography Of Sardar Patel In Hindi

सरदार वल्लभ भाई पटेल : लौह पुरुष | Biography Of Sardar Patel In Hindi

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में हुआ था। उनके पिताजी झावरेभाई एक सामान्य किसान थे। सरदार पटेल की शुरुआती शिक्षा करमसाद में हुई थी


सरदार वल्लभ भाई पटेल : लौह पुरुष 
(Biography Of Sardar Patel In Hindi)


1896 सरदार पटेल ने हाई स्कूल की परीक्षा पास की। पटेल बैरिस्टर बनना चाहते थे, लेकिन इतने आर्थिक साधन भी नहीं थे कि वह भारत में ही किसी कॉलेज में दाखिला ले सके।


उन दिनों कोई उम्मीदवार निजी तौर पर भी अध्ययन कर सकता था और कानूनी की परीक्षा में बैठ सकता था। सरदार पटेल अपने जान पहचान के वकील से किताबें ले लेते थे और घर में ही पढ़ाई करते थे। 


कभी-कभी वह कोर्ट भी चले जाते थे और ध्यानपूर्वक वकीलों की बहस सुनते थे। वल्लभ भाई ने बहुत अच्छे अंको से कानून की परीक्षा पास की और प्रैक्टिस गोधरा कोर्ट से शुरू कर दी। जल्दी ही उनकी वकालत फलने फूलने लगी। 


उनका विवाह झाबेराबा से हुआ। उनके यहां एक बेटी मनीबेन और पुत्र दाहयाभाई का जन्म हुआ। 


जब पटेल की पत्नी की मृत्यु हुई, तब उनकी उम्र केवल 33 साल थी। उनकी दोबारा शादी करने की कोई इच्छा नहीं थी। पटेल इंग्लैंड चले गए। उन्होंने बहुत लगन के साथ पढ़ाई करी और बैरिस्टर-एट-लो के इम्तहान में प्रथम स्थान प्राप्त किया। 



1913 में सरदार पटेल वापस भारत लौट आए और अहमदाबाद में अपनी प्रैक्टिस शुरू कर दी। वह जल्दी ही प्रसिद्ध हो गए। 


1917 में अपने मित्रों के प्रेरित करने पर पटेल ने चुनाव लड़ा और जीतकर अहमदाबाद के सफाई कमिश्नर बन गए।


सरदार पटेल चंपारण सत्याग्रह में गांधीजी की सफलता से बहुत प्रभावित थे। 1918 में गुजरात के खेड़ा में सूखा पड़ गया। किसानों ने कर की उच्च दरों से रियायत मांगी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इंकार कर दिया। 


गांधी जी ने किसानों की समस्याओं को उठाया लेकिन वह खेड़ा में अपना पूरा समय नहीं दे पाए। वह किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रहे थे, जो आंदोलन का नेतृत्व कर सके।


सरदार पटेल आगे आए और आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने अपनी लाभप्रद वकालत की प्रैक्टिस छोड़ दी और सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। 


वल्लभ भाई ने सफलतापूर्वक खेड़ा में किसानों के विद्रोह का नेतृत्व किया। यह विद्रोह 1919 में खत्म हुआ, जब ब्रिटिश सरकार कर वसूलने का आदेश रद्द करने और कर की बढ़ी दरें वापस लेने को तैयार हो गई। 


खेड़ा सत्याग्रह ने सरदार पटेल को राष्ट्रीय नायक बना दिया। उन्होंने गांधी जी के असहयोग आंदोलन का समर्थन किया और गुजरात कांग्रेस का अध्यक्ष होने के नाते, अहमदाबाद में ब्रिटिश वस्तुओं की होली जलाने की आयोजन में सहायता की। 


1922, 1924 और 1927 में सरदार पटेल अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए। 


1928 में गुजरात बारडोली तालुका बाढ़ और अकाल की चपेट में आ गया। इस कठिन समय में ब्रिटिश सरकार ने कर की दरे 30% तक बढ़ा दी। 


सरदार पटेल ने किसानों की ओर से मोर्चा संभाला। किसानों को संगठित किया और उनसे कहा कि वह कर की एक कोढ़ी भी ना दें। 


सरकार ने आंदोलन को दबाने की कोशिश करी लेकिन अंततः पटेल के सामने झुक गई। पटेल को उनके साथी सरदार के नाम से संबोधित करने लगे। 


वह कांग्रेस के 1931 में कराची में होने वाले अधिवेशन के लिए अध्यक्ष चुने गए। लंदन में गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद, 1932 में गांधी और पटेल को गिरफ्तार कर लिया गया और यरवदा की केंद्रीय जेल में बंद कर दिया गया। इस कारावास के दौरान सरदार पटेल और महात्मा गांधी एक दूसरे के करीब आ गए। जुलाई, 1934 को सरदार पटेल को छोड़ दिया गया। 


अगस्त 1942 में, कांग्रेस ने भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया। सरकार ने कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, जिनमें सरदार पटेल भी शामिल थे। सभी नेताओं को 3 साल बाद छोड़ा गया। 


15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता मिलने के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और सरदार वल्लभ भाई पटेल पहले उपप्रधानमंत्री बने। 


सरदार पटेल गृह मामलों, सूचना और प्रसारण और राज्यों के मंत्रालय भी मंत्रालय के भी प्रभारी थे।


उस समय भारत में राज परिवारों द्वारा शासित 565 राज्य थे। इन पर शासन करने वाले कुछ महाराज और नवाब समझदार और देशभक्त थे, लेकिन अधिकतर संपत्ति और सत्ता के नशे में चूर थे। वे सपने देख रहे थे कि अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद वह स्वतंत्र शासक बन जाएंगे। 


कुछ तो इस सीमा तक चले गए कि अपने प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजने की योजना बनाने लगे। सरदार पटेल ने भारतीय नरेशों से कहा कि वह अपने देश की स्वतंत्रता में शामिल हो और एक उत्तरदाई शासन की तरह कार्य करें। 


उन्होंने 565 राज्यों के शासको को समझाया कि भारतीय गणराज्य से स्वतंत्रता असंभव है। अत्यंत बुद्धिमानी और राजनीतिक दूरदर्शिता के साथ उन्होंने उन राज्यों को मिलाया। 


उन्होंने हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब के विवादास्पद मामलों को बड़ी सूझबूझ से निपटाया, जो शुरू में भारत में शामिल नहीं होना चाहते थे। 


देश की एकता के लिए किए जा रहे सरदार पटेल के अथक कार्यों को सफलता मिली। इस कार्य की उपलब्धि के बाद सरदार पटेल को 'लौह पुरुष' की उपाधि मिली। 


1991 में भारत रत्न अलंकरण से उन्हें नवाजा गया। 15 दिसंबर 1950 को महान शख्सियत सरदार पटेल जी की मृत्यु हो गई।


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