स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

स्वामी विवेकानंद की जीवनी | Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और मां का नाम भुवनेश्वरी देवी था 


स्वामी विवेकानंद की जीवनी 
(Biography Of Swami Vivekananda In Hindi)


1879 में नरेंद्र ने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में दाखिला ले लिया। उन्होंने पाश्चात्य तर्कशास्त्र, पाश्चात्य दर्शन और यूरोपीय देशों के इतिहास का अध्ययन किया। 


भगवान के अस्तित्व को लेकर नरेंद्र के मस्तिष्क में संदेह उभरने लगे। इसने उन्हें केशव चंद्र सेन द्वारा उस समय चलाया जा रहे एक महत्वपूर्ण धार्मिक आंदोलन, ब्रह्म समाज से जोड़ दिया। 


लेकिन; समाज की सामूहिक प्राथनाएं और भक्ति-गीत भगवान को समझने के नरेंद्र के उत्साह को संतुष्ट नहीं कर पाते। 


इसी दौरान नरेंद्र को दक्षिणेश्वर के श्री रामकृष्ण परमहंस के बारे में पता चला। 


परमहंस काली के मंदिर में पुजारी थे। 


वह विद्वान नहीं थे, लेकिन वह एक महान भक्त थे। उनके विषय में कहा जाता था कि उन्होंने भगवान को अनुभव किया है। 


एक बार नरेंद्र अपने दोस्तों के साथ उनसे मिलने गया । उन्होंने परमहंस से पूछा 'क्या उन्होंने भगवान को देखा है।' 


रामकिशन का तत्काल उत्तर था हां! मैंने भगवान को देखा है, ठीक वैसे ही जैसे मैं तुम्हें यहां देख रहा हूं, केवल और अधिक स्पष्ट भाव से।' 


नरेंद्र हैरान हो गए। उन्होंने बार-बार रामकृष्ण से मिलने जाना शुरू कर दिया।


रामकृष्ण अक्सर कहां करते थे कि भगवान का अनुभव करने के लिए पैसे और औरतों की इच्छा छोड़ देना चाहिए। 


एक दिन नरेंद्र ने उनसे तकिए के नीचे एक सिक्का छिपा दिया। रामकिशन बाहर गए थे। 


कमरे में लौटे और खटिया पर लेट गए परंतु ऐसे कूदे जैसे उन्हें किसी बिच्छू ने काट लिया हो। उन्होंने बिछौना हिलाया, सिक्का नीचे गिर गया पता चला यह काम नरेंद्र का था। 


नरेंद्र ने उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया और 5 साल तक उनसे अद्वैत वेदांत की शिक्षा ली। 


1886 में रामकृष्ण का देहांत हो गया। उन्होंने नरेंद्र को अपने उत्तराधिकारी के रूप में नामित कर दिया।


नरेंद्र और रामकृष्ण के शिष्यों में सन्यासी बनने के लिए प्रतिज्ञाएं ली और सभी चीजों का त्याग कर दिया। बरनागोरे के एक भूतहा घर मैं रहना शुरू कर दिया। 


1890 में नरेंद्रनाथ ने देश के सभी भागों की यात्रा की। यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद का नाम प्राप्त किया। कहा जाता है कि यह नाम उन्हें खेतड़ी के महाराजा ने दिया था।


अपनी यात्रा के दौरान, विवेकानंद राजा के महल में रहे तो गरीब की झोपड़ी में भी रहे। 


वह भारत के विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियों और लोगों के विभिन्न वर्गों के संपर्क में आए। उन्होंने देखा कि समाज में बहुत असंतुलन है और जाति के नाम पर बहुत अत्याचार है। 


स्वामी विवेकानंद 24 दिसंबर 1892 को कन्याकुमारी पहुंचे। उन्होंने तैरकर समुद्र पार किया और एक सूनी चट्टान पर ध्यान करने लगे। 


तीन दिन तक ध्यान किया। कहा गया कि उन्होंने भारत के भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में ध्यान किया। चट्टान वर्तमान में विवेकानंद स्मारक के रूप में प्रसिद्ध है। 


1893 में स्वामी विवेकानंद शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका गए। 


उन्हें अपना संबोधन प्रसिद्ध शब्दों, 'अमेरिका के बहनों और भाइयों' के साथ प्रारंभ करने के कारण जबरदस्त वाहवाही मिली। 


स्वामी जी ने अपनी कुशल वाकपटुता से अमेरिका में हर एक को सम्मोहित कर दिया। 


जहां भी वह जाते थे, वह भारतीय संस्कृति की महानता का बखान करते थे। उन्होंने ईसाई मिशनरियों द्वारा भारत में किया जा रहे दुष्प्रचार की भर्त्सना की। 


स्वामी विवेकानंद इंग्लैंड भी गए। कई लोग उनके शिष्य बन गए। उनमें से सबसे प्रमुख भगिनी निवेदिता थी। वह भारत आई और यही बस गई। 


4 साल भ्रमण करने के बाद 1897 में भारत वापस लौटे और भारतीयों में आध्यात्मिक विकास का संदेश फैलाना शुरू कर दिया। 


उन्होंने अनुभव किया समाज सेवा केवल संगठित अभियान और ठोस प्रयासों द्वारा ही संभव है। इस उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की शुरुआत की। 


और; अपनी विचारधारा और उद्देश्य प्रतिपादित किए। अगले 2 सालों में उन्होंने बेलूर में गंगा के किनारे रामकृष्ण मठ की स्थापना करी। 


उन्होंने एक बार फिर जनवरी, 1899 से दिसंबर 1900 तक पश्चिम की यात्रा की। 


स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (समाधि) 4 जुलाई 1902 को कोलकाता के पास बेलूर मठ में हो गई। 


Read Also :


Post a Comment

0 Comments