दुर्गा भाभी कौन थी
(Deshbhakti Story In Hindi)
पारिवारिक जीवन
दुर्गावती देवी को दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है। दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को कौशाम्बी में हुआ था। इनके पिता जी का नाम पंडित बाके बिहारी लाल जी था, जो एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते थे।
वैवाहिक जीवन
दुर्गा भाभी का विवाह 10 वर्ष की आयु में एक सम्पन्न परिवार में भगवती चरण भोहरा के साथ हुआ था। भगवती चरण भोहरा के पिता रेलवे में अधिकारी थे। अंग्रेज सरकार ने इन्हें राय साहब का किताब भी दिया था, जिसकी वजह से वो खुलकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं ले पा रहे थे।
जैसे ही इनके पिता का देहांत हुआ, भगवती चरण भोहरा और उनकी पत्नी दुर्गा भाभी अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।
आजाद की लड़ाई में संघर्ष
दुर्गा भाभी ने स्वतंत्रता संग्राम में आर्थिक रूप से भी मदद की।
आपको जानकार हैरानी होगी कि जब चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों के हाथों पकड़े जाने वाले थे तो उन्होंने खुद को गोली मारी थी और जिस बंदूक द्वारा गोली मारी गयी थी वो बंदूक दुर्गा भाभी द्वारा दी गयी थी।
दुर्गा भाभी का मुख्य कार्य क्रान्तिकारियों को हथियार मुहैया कराना था।
और, दुर्गा भाभी खुद भी हथियार चलाना जानती थी। उन्होंने कई बार अंग्रेज अफसरों को मारने की कोशिश भी की थी। इसकी वजह से अंग्रेज दुर्गा भाभी से खफा हुए और उन्हें अंग्रेज अफसर परेशान करने लगे।
दुर्गा भाभी क्रांतिकारियों की बड़े ही अनूठे तरीके से मदद करती थी। एक बार की बात है, जब भगत सिंह ने एक अंग्रेज अफसर पर हमला किया था तो अंग्रेज पुलिस से बचने के लिए दुर्गा भाभी ने भगत सिंह की मदद की थी।
कैसे पड़ा नाम दुर्गा
इसके लिए वो भगत सिंह की पत्नी बनी और दुर्गा भाभी का पुत्र जिसका नाम सतेंद्र था। वो उनका पुत्र बना और भगत सिंह ने अपनी बाल और दाढ़ी कटवाई और एक अंग्रेज का रूप धारण कर लिया।
आपने भगत सिंह का एक चित्र देखा होगा, जिसमें वो एक टोपी पहले हुए है वो इसी समय का चित्र है इसके बाद उन्होंने ट्रैन के फर्स्ट क्लास का टिकट कराया और भगत सिंह को सही सलामत अंग्रेजों से बचाकर बम्बई से बाहर निकाला।
इनको दुर्गा भाभी के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि दुर्गा भाभी और भगवती सभी क्रांतिकारियों को अपने छोटे भाई के रूप में देखती थी।
ये सभी क्रांतिकारियों की मदद करती थी फिर चाहे वो मदद आर्थिक रूप से हो या किसी क्रन्तिकारी को घर में पनाह देनी हो इसलिए इन्हें दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है।
फिर जैसे ही दुर्गा भाभी के सभी साथी धीरे धीरे शहीद होने लगे और ये पूरी तरह अकेली हो गयी इनके साथ कोई नहीं था तो दुर्गा भाभी ने क्रांतिकारी गतिविधियों से कदम पीछे कर लिए।
और अपने बच्चे की परवरिश के लिए गाज़ियाबाद आ गयी। जहाँ इन्होने कुछ दिन स्कूल में नौकरी की क्योंकि दुर्गा भाभी के पीछे पुलिस पड़ी हुई थी तो पुलिस इनको परेशान करने लगी इसके बाद ये अपने ससुराल लाहौर चली गयी। वहां भी पुलिस ने इनको परेशान किया जिसके कारण इन्हे वापिस दिल्ली आना पड़ा।
निधन
दिल्ली में इन्होने कांग्रेस में काम किया लेकिन इन्होने कुछ कारण से कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया।
दुर्गा भाभी की मृत्यु 14 अक्टूबर 1999 को गाजियाबाद में हुई।
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