निशांत जैन के क्लर्क से लेकर IAS ऑफिसर बनने का, ये रहा फॉर्मूला
निशांत ने बताया देश की प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षा आईएएस में सफलता पाने के लिए मात्र भाषा के साथ ही अंग्रेजी पर अच्छी पकड़ जरूरी है।
उनकी सफलता के पीछे यही ये बड़ी वजह रही है। यानी की प्रतियोगी का द्विभाषी होना जरूरी है।
सफलता पानी का पैरामीटर अलग अलग होता है और उनके संघर्ष की कहानी भी अलग-अलग जुबानी में होता है। ज्यादातर कामयाबी उन्हीं को हासिल होती है।
जोकि अपना जीवन काफी अभाव में गुजारते हैं, उनके अंदर कुछ बड़ा करने का जज्बा होता है। वह खुद को संघर्ष की आग में जला डालते हैं।
तब जाकर उन्हें कोई बड़ी कामयाबी हाथ लगती हैठीक ऐसा ही हुआ आईएएस अधिकारी निशांत जैन के साथ।
निशांत जैन ने साल 2014 में यूपीएससी की परीक्षा में 14वी रैंक हासिल करने में कामयाबी पाई थी।
इन्होंने हिंदी मीडियम से पढ़ाई की मीडियम से पढ़ाई करने के नाते यूपीएससी की परीक्षा भी अपनी सहूलियत के लिहाज से हिंदी में दी।
उन सबके होते हुए भी इन्होंने देश की सबसे कठिन परीक्षा को पास किया और IAS ऑफिसर बने।
निशांत ने इस बात को स्वीकारा की हिंदी के साथ साथ स्टूडेंट की अंग्रेजी में कमांड होना बेहद आवश्यक है।
यूपीएससी परीक्षा करने के लिए प्रतियोगी के पास इंग्लिश का ज्ञान होना जरूरी होता है।
निशांत जैन वैसे तो मूल रूप से मेरठ की निवासी है। इन्हें हिंदी कवि दुष्यंत कुमार की रचनाएं बेहद पसंद आती है।
निशांत का कहना है कि दुष्यंत कुमार को पढ़ने वाले स्टूडेंट कभी हताशा के शिकार नहीं होते, इसलिए उन्हें विशेष तौर पर ज्यादा से ज्यादा दुष्यंत कुमार की रचनाओं को पढ़ना चाहिए।
निशांत के ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद ही उनकी नौकरी डाक विभाग में क्लर्क की पोस्ट पर लगी थी।
लेकिन, इस नौकरी के कारण वह पढ़ाई के लिए समय नहीं निकाल पाते थे यही वजह थी कि इन्होंने नौकरी छोड़ दी।
कहते है न कुछ बड़ा पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ऐसा ही निशांत के साथ हुआ लेकिन ये अपने लक्ष्य पर डटे रहे नतीजा इनको बेहद ही कम समय में बड़ी सफलता मिली।
इन्होंने मन ही मन संकल्प कर लिया था कि चाहे जो हो जाए, उन्हें आईएस ऑफिसर ही बनना है।इसके बाद इन्होंने जीत और परिश्रम किया और अंत में इनके हाथ सफलता लगी।
निशांत राजस्थान कैडर के IAS अधिकारी है और जयपुर में पर्यटन विभाग में बड़ी ही लगन से जिम्मेदार संभाल रहे।
उन्होंने ठान लिया था कि चाहें जो हो जाए, आईएएस ही बनना है। इसके बाद उन्होंने मेहनत की और सफलता हासिल की।
निशांत राजस्थान कैडर के आईएएस हैं, और जयपुर में पर्यटन विभाग में बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
दोस्तों! अगर मान लो तो हार हैं और ठान लो तो जीत है, ये ही प्रेरणा हमें निशांत की संघर्ष कहानी को पढ़कर समझ में आता है। जो जो संघर्ष करा हैं वो ही मैदान फतह करा है।
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