क्रोधी बालक || Hindi Bodh Katha

क्रोधी बालक || Hindi Bodh Katha

क्रोध व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। इसलिए हमें क्रोध करने से बचना चाहिए। आइए पढ़ते हैं ये बेहतरीन रोचक moral story in hindi :

 


क्रोधी बालक || Moral Story


एक समय की बात है एक गांव में ऐसा बालक रहता था जिसे बात-बात पर गुस्सा आ जाता था। उसे अपने गुस्से पर जरा सा भी नियंत्रण नहीं था। वह हर छोटी सी बात पर इतना गुस्सा हो जाता था कि वह किसी को भी भला बुरा कह देता था।


उसकी इस आदत से हर कोई परेशान था और इस वजह से स्कूल में और घर के आसपास के लोग उससे किनारा करते थे। उसके माता-पिता ने जब यह देखा तो अपने बच्चे को खूब समझाया।


मगर उस बालक को कुछ भी समझ न आया वह हर बार अपने गुस्से को नियंत्रण करने का प्रयास तो करता था।


मगर किसी भी छोटी बात से इतना अधिक क्रोधित हो जाता था कि वह किसी को कुछ भी कह देता था। 


उसके पिता ने इस समस्या को समझा और एक दिन एक प्लान उनके दिमाग में आया और अपने बच्चे को बुलाया।


और उसके हाथ में एक थैली कील की और हथौड़ी देते हुए कहा कि अगली बार जब भी तुम्हें गुस्सा आए तो तुम पास की दीवार पर जाकर एक कील ठोक देना।


इस प्रक्रिया का पालन करने से तुम अपने क्रोध पर काबू कर पाओगे।


बच्चे ने पिता की आज्ञा मानी और हर बार जब भी उसे गुस्सा आता, वह एक कील घर के सामने वाली दीवार पर ठोक आता। 


उसे जब पहले दिन गुस्सा आया तो उसने 20 किलें उस दीवार पर ठोकी।


उसे हर छोटी बात पर गुस्सा आ जाता और उसे दौड़कर उस दीवार तक जाना पड़ता और एक कील ठोकनी पड़ती। बार-बार ऐसा करने पर उसे काफी थकान और परेशानी महसूस होती।


इस वजह से उसने यह निर्णय लिया कि अब वह अपने गुस्से को नियंत्रण करने का प्रयास करेगा ताकि उसे इतनी दूर आकर कील न ठोकनी पड़े। 


धीरे-धीरे उसने अपने गुस्से पर नियंत्रण करना सीख लिया और धीरे-धीरे दीवार पर किलों की संख्या कम होने लगी।


फिर एक दिन ऐसा भी आया जब उसने दीवार पर एक भी कील नहीं ठोंकी उसके बाद उसने अपने आपको परखना शुरू किया।


और पाया कि अब उसे पहले के मुकाबले काफी कम गुस्सा आता है और अगर गुस्सा आता भी है तो वह अपने गुस्से को अच्छी तरह से नियंत्रण करना सीख चुका है। 


जब उसे इस बात का विश्वास हो गया तो वह थैली और हथौड़ी को पिताजी को वापस करते हुए कहता है कि पिताजी अब मुझे इसकी आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैं अपने क्रोध पर काबू करना सीख चुका हूं।


उसके पिता यह सुनकर काफी खुश हुए और अपने बच्चे को आदेश दिया कि जब भी तुम्हें अपने गुस्से पर नियंत्रण करना हो तुम जाकर दीवार से एक कील खींच कर वापस निकालना। बच्चा ऐसा ही करने लगा।


जब उसे अपने गुस्से पर काबू करना होता। वह जाकर दीवार से कील बाहर निकलता।


धीरे-धीरे दीवार पर से किलों की संख्या कम होने लगी। मगर कुछ कीलें ऐसी थी जो दीवार से बाहर नहीं आ सकी। 


उसने जाकर यह बात अपने पिता को बताई...


पिता ने उस दीवार के पास आकर अपने बेटे से कहा इस दीवार को देखने पर तुम्हें क्या दिखता है?


उस बच्चे ने उत्तर दिया कि मुझे इस दीवार पर छेद दिखाई देता है।


फिर उसके पिता ने उसे समझाया कि हथौड़ी वह क्रोध वाली बानी है जिसका इस्तेमाल करके तुम लोगों के हृदय पर वार करते थे।


और, इस तरह का छेद कर देते थे। आज तुम अपने गुस्से पर कितना भी नियंत्रण कर लो तुम दीवार को पहले जैसा नहीं बना सकते। उसी प्रकार तुम अब कुछ भी कर लो तुमने जिन्हें अपने क्रोध वाली वाणी से चोट पहुंचाया है, उनके घाव को अब तुम कभी नहीं भर सकते। 


बच्चे को यह बात समझ आ गई और वह समझ गया कि गुस्सा कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि क्रोध में मन से निकलने वाली बातें लोगों के दिल में छेद कर देती है जिससे रिश्ते खराब हो जाते हैं। 



सीख || Moral Of The Story


क्रोध में मन से निकली वाणी लोगों के दिल को चोट पहुंचा सकती है इसलिए क्षण भर के गुस्से के लिए कोई भी ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए जिससे लोगों को तकलीफ पहुंचे। 



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