क्या आप ताजमहल को प्रेम का सबसे बड़ा स्तंभ मानते है? अगर आपका जवाब हां! है तो आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसे सुनने के बाद आप अपने फैसले पर दोबारा विचार करेंगे।
दशरथ मांझी की प्रेरणादायक कहानी || Real Inspiration Stroy In Hindi
यह कहानी बिहार के एक छोटे से गांव में रहने वाले दशरथ मांझी की है। जालौर और अन्नी नाम के दो छोटे गांव एक बड़े से पहाड़ के पास बसे हुए है।
पास में एक शहर है वजीरगंज, इस गांव के लोगों को छोटी से छोटी चीजों की जरूरत के लिए वजीरगंज शहर तक जाना पड़ता था।
वह विशालकाय पहाड़ 360 फुट लंबा था जिसे चढ़कर पार करना गांव के लोगों के लिए बहुत मुश्किल था। इस वजह से पहाड़ का चक्कर काट के शहर जाना पड़ता था जिससे गांव से शहर की दूरी 80 किलोमीटर हो जाती थी।
इस गांव में किसी भी चीज की सुविधा सही तरीके से मौजूद नहीं थी छोटी से छोटी जरूरत की चीजों को पूरा करने के लिए भी लोगों को गांव से बाहर जाना पड़ता था।
इस गांव में दशरथ मांझी नाम का एक लड़का रहता था जो पास के गांव की एक फाल्गुनी नाम की लड़की से प्यार करता था।
उन दोनों के प्रेम की कहानी गांव भर में चर्चा में थी। आगे चलकर दोनों की शादी करवा दी गई और दोनों जालौर गांव में रहने लगें।
फाल्गुनी देवी रोज दशरथ मांझी को खेत में दोपहर के समय खाना देने जाया करती थी।
दशरथ का खेत पहाड़ के पास ही था। एक ऐसी ही दोपहर थी जब फाल्गुनी देवी अपने पति के लिए खाना लेकर जा रही थी और पहाड़ पर अचानक पैर फिसलने की वजह से वह बुरी तरह से जख्मी हो गई और पहाड़ का चक्कर काट के वजीरगंज पहुंचते समय काफी देर हो गई जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
दशरथ मांझी इस सदमे को बर्दाश्त ना कर पाए और इस हादसे ने उन्हें बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था।
कई दिनों तक उनके मन में यह ख्याल आते रहे कि इस पहाड़ की वजह से ही उनकी पत्नी की जान गई। इस वजह से वह इस पहाड़ को अपने रास्ते से हटाना चाहते थे और दशरथ मांझी अपने जीवन का एक ही लक्ष्य बना लिया था कि इस पहाड़ को काटना ही मेरा एक लक्ष्य है।
इस बात को निर्धारित करके अपने घर से एक छोटी सी छैनी और हथौड़ी लेकर वह पहाड़ काटने चल दिए।
जब गांव वालों ने दशरथ मांझी को पहाड़ पर कई दिनों तक बैठकर एक छोटी सी छैनी और हथौड़ी से पहाड़ काटते देखा तो वह उनका मजाक उड़ाने लगे....
और कई लोगों ने कहा कि पत्नी की मौत के कारण बेचारा सदमे में पागल हो गया है। मगर दशरथ मांझी ने दुनिया की कोई बात नहीं सुनी।
और अपना पूरा ध्यान लक्ष्य पर ही केंद्रित करके रखा। कई मौसम आए कभी गर्मी कभी ठंडी कभी बरसात मगर दशरथ मांझी कभी लौटकर घर नहीं आए।
वह महीनों तक उस पहाड़ पर बैठकर एक छोटी सी छैनी और हथौड़ी से वार करते रहे।
लगभग 22 साल की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार उन्होंने उस 360 फुट लंबे पहाड़ को बीच से काटकर 30 फुट चौड़ा रोड बना दिया।
उनके इस कारनामे के बाद सभी लोग उन्हें माउंटेन मैन ऑफ इंडिया के नाम से जानने लगे कई लोग देश विदेश से इस प्रेम की इमारत को देखने के लिए वहां आए कि दशरथ मांझी ने एक छोटी सी हथोड़ी और एक छैनी के दम पर किस प्रकार इतने बड़े पहाड़ को काटकर रख दिया।
आज अन्नी गांव से वजीरगंज की दूरी मात्र 15 किलोमीटर की रह गई है जो किसी जमाने में 90 किलोमीटर की हुआ करती थी।
और जालौर गांव जो वजीरगंज से 80 किलोमीटर दूर था और उनकी पत्नी वक्त पर अस्पताल नहीं पहुंच पाई थी, आज वह रास्ता महज 3 किलोमीटर का रह गया है।
इस अद्भुत और अविश्वसनीय कारनामे के बाद जब दशरथ मांझी से पूछा गया कि वह लोगों को क्या सलाह देना चाहेंगे तो उन्होंने केवल एक वाक्य कहा कि "जीवन में कभी भगवान के भरोसे मत बैठो क्या पता भगवान तुम्हारे भरोसे बैठा हो"
दशरथ मांझी की अद्भुत दृढ़ संकल्प और एकाग्र सोच से आज की युवा पीढ़ी को सीख लेनी चाहिए।
और अपने जीवन में किस प्रकार किसी संकल्प पर टिके रहना चाहिए यह उनसे सीखने की जरूरत है।
उन्हें भारतीय सरकार के द्वारा अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया और विश्व में माउंटेन मैन ऑफ इंडिया के नाम से दशरथ मांझी को आज भी याद करा जाता है।
मूवी भी बनी
दशरथ मांझी पर एक मूवी 'मांझी द माउंटेन मैन' भी बन चुकी है। जिसमें दशरथ मांझी का किरदार नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने निभाया था। इस मूवी को देखने के बाद व्यक्ति में एक अलग ही motivation का संचार होता है।
मूवी के फेमस डायलॉग :
जीवन में कभी भगवान के भरोसे मत बैठो, क्या पता भगवान तुम्हारे भरोसे बैठा हो
बहुत अकड़ है तोहार में, देख कैसे उखाड़ते हैं तेरी अकड़
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