बिना दास || Freedom Fighter

बिना दास || Freedom Fighter

बिना दास एक ऐसा अनसुना नाम जिनके बारे में हमें जरूर जानना चाहिए। अगर हम इनको दूसरी झांसी की रानी कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। आइए जानते है Bina Das Freedom Fighter के बारे में 


 बीना दास || Bina Das


इतिहास का वह स्वर्णिम दिन जब 21 साल की एक भारतीय लड़की की हिम्मत ने अंग्रेजों के होश उड़ा दिए थे। साथ ही इस लड़की ने उस रूढ़िवादी सोच को भी जड़ से हिला दिया कि हथियार चलाना सिर्फ पुरुषों का ही काम है। यह 21 साल की लड़की थी बिना दास।


बिना बचपन से ही क्रांतिकारी स्वभाव की थी। अपनी स्कूल की शिक्षा के बाद वे महिला छात्र संघ में शामिल हो गई।


संघ में सभी छात्राओं को लाठी, तलवार चलाने के साथ-साथ साइकिल और गाड़ी चलाना भी सिखाया जाता था।


साइमन कमीशन के बहिष्कार के समय बिना ने अपनी कक्षा की कुछ अन्य छात्राओं के साथ अपने कॉलेज के फाटक पर धरना दिया। वह स्वयंसेवक के रूप में कांग्रेस अधिवेशन में भी सम्मिलित हुई। इसके बाद वे युगांतर दल के क्रांतिकारियों के संपर्क में आई।


बिना दास को बीए की परीक्षा पूरी करके दीक्षांत समारोह में अपने डिग्री लेनी थी। उन दिनों बंगाल के गवर्नर जैक्सन को कलकत्ता विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को दीक्षांत समारोह में उपाधियां बांटनी थी।


बिना ने अपने साथियों से बात करके यह तय किया कि डिग्री लेते समय वह दीक्षांत भाषण देने वाले बंगाल के गवर्नर को अपनी गोली का निशाना बनाएंगे। क्योंकि बंगाल के गवर्नर उस सिस्टम का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसने मेरे 30 करोड़ देशवासियों को गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ है और वे गवर्नर की हत्या कर इस सिस्टम को हिला देना चाहती थी।


जैसे ही जैकसन ने समारोह में अपना भाषण देना शुरू किया बिना ने भरी सभा में उठकर गवर्नर पर गोली चला दी। पर बिना का निशाना चूक गया।


और, गोली जैकसन के कान के पास से होकर गुजरी। गोली की आवाज से सभा में अफरा-तफरी मच गई। इतने में लेफ्टिनेंट कर्नल सुहरावर्दी ने दौड़कर बिना का गला एक हाथ से दबा दिया।


और, दूसरे हाथ से पिस्तौल वाली कलाई पकड़ कर बंदूक की खोल छत की तरफ कर दी। इसके बावजूद बिना एक के बाद एक गोलियां चलाती रही। उन्होंने कुल 5 गोलियां चलाई बिना को तुरंत ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।


बिना पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें 9 साल कठोर कारावास की सजा हुई।


मुकदमे के दौरान उन पर काफी दबाव बनाया गया कि वे अपने साथियों के नाम उगल दे। लेकिन बिना टस से मस न हुई।


उन्होंने मुकदमे के दौरान कहा मैं स्वीकार करती हूं कि मैंने सीनेट हाउस में अंतिम दीक्षांत समारोह के दिन गवर्नर पर गोली चलाई थी। मैं खुद को इसके लिए पूरी तरह से जिम्मेदार मानती हूं। मगर मेरी नियति मृत्यु है तो मैं इसे अर्थपूर्ण बनाना चाहती हूं। सरकार की उस निरंकुश प्रणाली से लड़ते हुए जिसने मेरे देश और देशवासियों पर अनगिनत अत्याचार किए हैं…."


ऐसी थी इन देशवासियों की ताकत जो ठान लिया वह करके ही दम लेते थे अपने पर ही अकेले सब जुल्म सह जाते थे। परंतु अपने साथियों और देशवासियों को मुसीबत में नहीं डालते थे।


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