चितरंजन दास || Freedom Fighter

चितरंजन दास || Freedom Fighter

एक ऐसा इन्सान जिसने सब कुछ होते हुए भी देश के लिए अपने को दांव पर लगा दिया। वो चाहते तो बड़े ही शान से जिन्दगी जी सकते थे लेकिन आज़दी के मतवालों को कहां अपनी सुध होती है। आइए पढ़ते हैं एक और महान क्रांतिकारी योद्धा की सच्ची कहानी :


चितरंजन दास || CHITRANJAN DAS


एक अमीर घराने का व्यक्ति था जिसने इंग्लैंड से वकालत की और बेहद शान से अपना जीवन जी रहा था। उसके पास सब कुछ था सिवाय एक चीज के। वह आजाद देश का नागरिक नहीं था। जब यह बात उसके मन में घर कर गई तो उसने एकाएक अपने सारे सुख त्याग दिए और देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद पड़ा। यह कहानी है देशबंधु चितरंजन दास की।


चितरंजन दास के पास सब कुछ था। उनके पास बहुत-सी धन संपत्ति और सभी प्रकार की सुख सुविधाएं थी। वे चाहते तो आराम से अपनी वकालत पूरी करते जब तक बाकी लोग देश के लिए लड़ रहे थे। वे चाहते तो आसानी से दूसरे देश में जाकर रह सकते थे। परंतु इन सबको त्यागकर उन्होंने देश की आजादी के लिए सोचा। उन्होंने यह देखा कि उनके देश की आजादी उनके लिए है। वे अपना सब कुछ त्यागकर देश के लोगों के लिए काम करने में जुट गए।


सी आर दास ने देश की आजादी में योगदान दिया था। वे देश की राजनीति में वर्ष 1917 से सक्रिय हो गए थे। वे स्वदेशी के बहुत बड़े समर्थक थे। उन्होंने खादी का समर्थन किया। दास ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुए असहयोग आंदोलन में भाग लिया। वर्ष 1920 में वे अपने जीवन की सुख सुविधाएं त्यागकर देश की आजादी के लिए आगे आए। उन्होंने वकालत छोड़ दी। 


उन्होंने अपनी सारी संपत्ति मेडिकल कॉलेज और महिला अस्पतालों को दान कर दी। उनकी इस दानशीलता के कारण ही जनता इन्हें देशबंधु अर्थात देश का दोस्त या बंधु कहने लगी। असहयोग आंदोलन के दौरान जिन विद्यार्थियों ने स्कूल छोड़ दिए थे, उनके लिए उन्होंने ढाका में 'राष्ट्रीय विद्यालय' की स्थापना की।


आंदोलन के दौरान उन्होंने भारी संख्या में स्वयंसेवकों को जमा किया और खादी विक्रय कार्यक्रम को भी बढ़ाने में मदद की। ब्रिटिश सरकार ने असहयोग आंदोलन को अवैध करार दिया और चितरंजन दास को गिरफ्तार कर 6 महीने की सजा दी। उनकी पत्नी बसंती देवी असहयोग आंदोलन में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थी। स्वाधीनता सेनानियों के बीच बसंती देवी बहुत ही आदरणीय थी और सुभाष चंद्र बोस तो उन्हें मां कहते थे।


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