बीरबल का आधा इनाम | Akbar Birbal Story In Hindi

बीरबल का आधा इनाम | Akbar Birbal Story In Hindi

Akbar Birbal Story बड़ी ही रोचक और शिक्षाप्रद होती है आइए उनमें से ही एक रोचक akbar birbal story hindi mein पढ़ते हैं

 


बीरबल का आधा इनाम 
(Akbar Birbal Kahani)


यह घटना उस समय की है जब राजा अकबर पहली बार बीरबल से मिले थे।


उस समय बीरबल का नाम बीरबल नहीं बल्कि महेश दास हुआ करता था।


जब राजा अकबर अपने राज्य के भ्रमण पर निकले तो उन्होंने महेश दास की चतुराई देखी और उससे काफी प्रसन्न हुए।


उन्होंने महेश दास को अपने दरबार में बुलाया और उन्हें अपनी एक अंगूठी दी जिससे साबित हो सके कि हां राजा अकबर ने ही महेश दास को दरबार में बुलाया है। 


महेश दास दरबार में जाने के लिए एक दिन तैयार हुए। जैसे ही महेश दास राज दरबार के मुख्य द्वार पर गए।


उन्होंने देखा कि कई लोग लाइन में खड़े हैं और वहां लोग अंदर जाने के लिए कुछ ना कुछ दिखा रहे हैं ताकि उन्हें राज दरबार के अंदर जाने की इजाजत मिले।


जब बारी महेश दास की आई तो महेश दास ने राजा अकबर के द्वारा दी गई अंगूठी को दिखाया।


जब राजदरबार ने बीरबल यानी महेश दास के हाथ में राजा अकबर की अंगूठी देखी तो उसे लगा कि जिसके हाथ में राजा अकबर की अंगूठी है उसे जरूर कुछ बड़ा इनाम मिलने वाला है। 


ऐसा सोचकर उसने महेश दास के सामने शर्त रखी कि जो इनाम तुम्हें मिलेगा उस इनाम में से मुझे आधा दोगे तो ही मैं तुम्हें अंदर जाने दूंगा वरना नहीं जाने दूंगा।


बीरबल कुछ देर सोचे और सोचने के बाद उन्होंने कहा कि ठीक है मुझे जो इनाम मिलेगा उसमें से मैं आपको आधा दे दूंगा। यह बात कह कर महेश दास राज दरबार में चले गए। 


जैसे ही महेश दास राज दरबार में गए राजा अकबर उन्हें तुरंत पहचान गए और उनकी प्रशंसा पूरे दरबारियों के सामने करने लगे।


उन्होंने कहा कि मैंने इस व्यक्ति को इनाम देने के लिए बुलाया है। उसके बाद अकबर ने महेश दास से कहा कि तुम्हें जो इनाम चाहिए वह मांगो तुम्हें वह इनाम दिया जाएगा।


महेश दास ने एक बार फिर पूछा कि क्या आप मुझे वह चीज देंगे जो मैं आपसे मागूंगा।


राजा अकबर ने कहा कि तुम राजा अकबर के दरबार में खड़े हो जो तुम मांगोगे वह तुम्हें दी जाएगी। 


यह बात सुनकर महेश दास ने कहा कि महाराज आप मुझे सौ कोड़े मारने का आदेश दीजिए।


मुझे मेरे पीठ पर सौ कोड़े खाने हैं।


महेश दास के इस मांग को सुनकर राजा अकबर के साथ-साथ राजा अकबर के सारे दरबारी चकित रह गए।


इसके बाद राजा अकबर ने महेश दास से सौ कोड़े मांगने के पीछे का कारण पूछा।


महेश दास साफ साफ शब्दों में बता दिया कि आपके दरबार के मुख्य द्वार पर जो सिपाही खड़ा है उसने मुझसे कहा है कि जो तुम्हें दरबार में ईनाम मिलेगा उसमें से आधा मुझे देना होगा।


तभी मैं जाने दूंगा नहीं तो नहीं जाने दूंगा। इसलिए मैंने आपसे इनाम के रूप में 100 कोड़े मांगे। 


यह बात सुनकर राजा अकबर ने उस सिपाही को बुलाया और तुरंत उसे 100 कोड़े मारने की सजा सुनाई।


एक बार फिर उन्होंने महेश दास की तारीफ की और महेश दास को अपने सलाहकार के रूप में चुन लिया।


महेश दास के नाम को राजा अकबर ने रूपांतरित कर दिया और उन्हें बीरबल का नाम दिया। तब से महेश दास बीरबल के नाम से प्रसिद्ध हो गए। 


सीख
(Moral Of The Story)


इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा खुद पर विश्वास रखना चाहिए और किसी भी काम को पूरी ईमानदारी से ही करनी चाहिए। 


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