सिद्धार्थ का जन्म 563 ईसा पूर्व में राजा शुद्धोदन और महारानी माया के यहां कपिलवस्तु में हुआ था।
सिद्धार्थ की मां महारानी माया उन्हें जन्म देने के सात दिनों बाद चल बसी।
गौतम बुद्ध
(Gautam Buddha Jivani In Hindi)
सिद्धार्थ का जन्म 563 ईसा पूर्व में राजा शुद्धोदन और महारानी माया के यहां कपिलवस्तु में हुआ था।
सिद्धार्थ की मां महारानी माया उन्हें जन्म देने के सात दिनों बाद चल बसी।
राजा ज्योतिषों ने शुद्धोदन से कहा कि या तो यह बालक बड़ा होकर सभी चीजों को त्याग देगा और बुद्ध बन जाएगा।
शुद्धोदन ने पूछा, “क्या मेरे पुत्र को सन्यासी बनने की ओर ले जाएगा?
ज्योतिषियों ने उत्तर दिया, “चार चिह्न बुढ़ापा, बीमारी, मृत्यु और एक संन्यासी के कारण बदलाव होगा।”
अतः शुद्धोदन ने निश्चित किया कि सिद्धार्थ को हमेशा सुरक्षा में रखा जाए।
संगीत नृत्य और परिचारक हमेशा उसे रहते….
16 साल की उम्र में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा से कर दिया, जिससे उन्हें एक पुत्र राहुल प्राप्त हुआ।
एक दिन, जब सिद्धार्थ की उम्र करीब 30 साल थी… अपने सेवक चन्ना के साथ महल की दीवारों से बाहर निकलने का प्रबंध कर लिया।
एक बूढ़े आदमी, एक रोगी, एक मृत शरीर और एक संन्यासी को देखकर सिद्धार्थ सोच में पड़ गए।
उन्हें अनुभव हुआ कि सांसारिक मोह क्षणिक है और समय के साथ शरीर नष्ट हो जाएगा।
सबको अचंभित और शुद्धोधन को दुखी करके सिद्धार्थ अपने राज्य, समृद्धि, पत्नी और पुत्र को छोड़कर सत्य की खोज में निकल पड़े….
सिद्धार्थ मगध गए और उसकी राजधानी राजगृह के पास स्थित पहाड़ियों की एक गुफा में रहने लगे। सन्यासियों और बैरागियों से अपने उत्तरों की खोज करने लगे।
सिद्धार्थ योगियों के साथ अभ्यास करते और ज्ञान की खोज में आत्म संयम द्वारा कड़ा तप भी करते। भोजन करना और पानी पीना बंद कर दिया।
भोजन से दूर रहने के कारण वह बहुत दुबले और कमजोर हो गए। लड़कियों का एक समूह वहां से गुजर रहा था। वह एक गीत गा रहा था जिसमें संयम और समझ का उल्लेख था।
उन्होंने पाया कि चरम नहीं बल्कि संयम सही मार्ग है और खाना खाना शुरू कर दिया….
सिद्धार्थ पीपल के वृक्ष के नीचे बैठते थे और नियमित रूप से ध्यान करते थे। वह भगवान और मानव अस्तित्व का सही अर्थ खोज रहे थे।
एक दिन में गहरे चिंतन में चले गए… एक गांव की लड़की ने सिद्धार्थ को देखा।
वह उनके पास आई और कहा महात्मन ऐसा लग रहा है आप भूखे हैं!!!! क्या मैं आपके लिए कुछ भोजन लाऊं?
सिद्धार्थ ने उत्तर दिया “हां, थोड़ा सा, मैं भूखा हूं क्या तुम मेरी भूख शांत कर सकती हो?
वास्तव में उनका अर्थ था आध्यात्मिक भूख।
लड़की ने अपनी बात जारी रखी, “श्रीमान, आप यह भोजन खा सकते हैं। उसने एक बड़े पत्ते में सिद्धार्थ के सामने कुछ भोजन रख दिया।
सिद्धार्थ ने उससे पूछा, “तुम्हारी इस दयालुता के लिए धन्यवाद। क्या तुम सोचती हो कि यह भोजन मेरी भूख शांत कर देगा?
लड़की ने उत्तर दिया हां! “श्रीमान भजन आपकी भूख शांत कर देगा। कृपया अब खाएं।”
सिद्धार्थ ने भोजन कर लिया और एक दिन निश्चय उत्पन्न हुआ।
उन्होंने संकल्प किया कि अगर उनका शरीर नष्ट हो जाएगा, तब तक वह भी यहां से नहीं हिलेंगे जब तक कि उन्हें उद्बोधन प्राप्त नहीं हो जाता और वह गहरे ध्यान में चले गए।
आखिर उन्हें वह प्राप्त हुआ और वह बुद्ध बन गए।
उन्हें बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। बुद्ध परमानंद में इतने डूब गए कि वह सात दिनों तक बोधि वृक्ष की परिक्रमा करते रहे…
बुद्ध ने अपने सिद्धांतों पर प्रवचन देना प्रारंभ कर दिया। शीघ्र ही बुद्ध के शिष्यों की संख्या बहुत अधिक हो गई और उन्हें अलग-अलग दिशाओं में सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए भेजा गया।
एक दिन बुद्ध राजगिरी में राजा बिंबसार से मिलने के लिए गए। राजा ने बुद्ध के सम्मान से स्वागत किया।
उन्होंने बुद्ध का प्रवचन सुना और तुरंत उनके अनुयायी बन गए। राजा के साथ ही हजारों लोग भी अनुयायी बन गए।
राजा ने बुध और उनके शिष्यों को बासों का एक उपवन दे दिया। बुद्ध ने इसे अपने आश्रम के रूप में इस्तेमाल किया।
बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन मृत्यु शैया पर थे। उनके लिए संदेश भिजवाया कि मरने से पहले एक बार बुद्ध को देखना चाहते हैं।
बुद्ध ने कपिलवस्तु के सीमांत क्षेत्र के वन में शिविर लगा लिया। शुद्धोधन अपने परिवार के सदस्यों और अन्यों के साथ बुद्ध से मिलने गए।
उनको इस तरह तप करते और कठोर जीवन जीते देख शुद्धोधन को बहुत पीड़ा हुई।
शुद्धोधन और दूसरे यह सब नहीं देख पा रहे थे। शीघ्र ही वापस लौट गए।
उनके भोजन की कोई व्यवस्था नहीं थी बल्कि जो परंपरा थी बुद्ध और दूसरे संन्यासियों ने राजगृह की गलियों में भिक्षा मांगना शुरू कर दिया।
शुद्धधन टूट गए। उन्होंने सभी सन्यासियों को भोजन उपलब्ध कराया और बुद्ध को महल ले गए।
बुद्ध की पत्नी यशोधरा उनसे मिलने के लिए नहीं आई। उसने कहा, “अगर उनके लिए मेरा कोई मूल्य होगा, तो वह समय मिलने आएंगे।”
यशोधरा एक महान महिला थी, जिन्हें सिद्धि और निर्लिप्तता जैसी विशेषताएं प्राप्त थी।
जबसे बुद्ध ने घर छोड़ा था, तब से वह कठोर जीवन जी रही थी।
जब बुद्ध को यह पता चला, तो वह यशोधरा से मिलने गए। बुद्ध को देखकर, यशोधरा उनके चरणों पर गिर गई और फूट-फूटकर रो पड़ी।
बुद्ध ने उन्हें आशीर्वाद दिया और महिला तपस्वियों का एक संघ स्थापित किया, उन्हें उसका प्रमुख बना दिया।
जैसे ही बुद्ध वहां से जाने वाले थे, यशोधर ने अपने बेटे राहुल को बुलाया और कहा, “अपने पिता के पास जाओ और उनसे अपना उत्तराधिकार मांगो।”
राहुल बुद्ध के पास गया और उनसे कहां, “पिताजी, कृपया मुझे मेरा उत्तराधिकार दें।”
बुद्ध ने उत्तर नहीं दिया और राहुल उनके पीछे-पीछे वन चला गया।
जब राहुल लगातार बुद्ध से यह पूछता रहा, तो बुद्ध ने कहा, “जो खजाना मुझे बहुत ही ब्रिज के नीचे मिला था, वह संपत्ति और विरासत में मैं तुम्हें सौंपता हूं।”
राहुल सन्यासियों में शामिल हो गया…
बुद्ध ने बहुत यात्राएं की और लगभग 50 सालों तक प्रवचन देते रहे…
कोसला राज्य की राजधानी श्रावस्ती में एक अनुयायी ने बुद्ध को अपने घर पर आमंत्रित किया।
सम्मान में एक बड़े भोज का आयोजन हुआ। यह भोजन उनका शरीर बच्चा नहीं पाया और वह बीमार पड़ गए।
एक सिद्ध आत्मा होने के कारण बुद्ध समझ गए कि उनका अंत निकट है।
उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि दो शाल के वृक्षों के बीच में खाट रख दें और उन्हें उसे पर लिटा दे।
अपने अनुयायियों को अपने अंतिम संदेश में उन्होंने कहा, “मेरे प्रिय सन्यासियों, अब विदाई का समय आ गया है।
जब मैं चला जाऊं, तो मेरे शरीर पर शौक मत करना, क्योंकि सभी पदार्थों का एक दिन नष्ट होना है अनुशासन के साथ कार्य करो और अपने मोक्ष को प्राप्त करो।
480 ईसा पूर्व बुद्ध की मृत्यु हो गई।
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