मेजर ध्यानचंद | Dhyan Chand Biography In Hindi

मेजर ध्यानचंद | Dhyan Chand Biography In Hindi

ध्यानचंद की धाक इतनी थी कि वियना के स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई, जिसके चार हाथ थे और उनमें चार हॉकी स्टिक थी


ध्यानचंद हॉकी के मैदान में इतने चमत्कारिक होते थे कि संसार भर में लोगों को संदेह होता था कि क्या उनकी स्टिक लकड़ी के अलावा किसी और वस्तु से बनी है


मेजर ध्यानचंद 

(Major Dhyanchand Biography In Hindi)


ध्यानचंद की धाक इतनी थी कि वियना के स्पोर्ट्स क्लब में उनकी एक प्रतिमा स्थापित की गई, जिसके चार हाथ थे और उनमें चार हॉकी स्टिक थी। 


ध्यानचंद हॉकी के मैदान में इतने चमत्कारिक होते थे कि संसार भर में लोगों को संदेह होता था कि क्या उनकी स्टिक लकड़ी के अलावा किसी और वस्तु से बनी है। 


आपको जानकर हैरानी होगी कि हॉलैंड में तो ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को तोड़कर तक देखा गया कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं है, लेकिन इससे लोगों को कुछ नहीं मिला।


जापान में लोगों ने सोचा कि उनके स्टिक के अंदर गोंद लगा है। 


ध्यानचंद जिन्हें हॉकी के जादूगर के रूप में जाना जाता है। उन्होंने हॉकी खेलना फौज में शुरू किया था।


उन्हें 1926 में न्यूजीलैंड के दौरे पर जाने वाली हॉकी टीम में शामिल किया गया। अपने शानदार खेल की बदौलत उनकी देश विदेश में बेहद सराहना हुई। 


ध्यानचंद की सहायता से भारत ने लगातार तीन ओलंपिक खेलों एम्स्टर्डम (1928) लॉस एंजलिस (1932) और बर्लिन (1936) में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। 


ध्यानचंद ने ओलंपिक खेलों में 101 गोल और दूसरे अंतरराष्ट्रीय खेलों में 300 गोल किए थे। 


भारत सरकार ने उन्हें 1954 में पद्म भूषण से नवाजा। 


मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। 


मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद उत्तरप्रदेश में हुआ था। ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में काम करते थे। 


ध्यानचंद ने अपना शुरुआती समय झांसी में बिताया। वह 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती हो गए थे और उन्होंने हॉकी को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया था। 


बर्लिन ओलंपिक में हिटलर उनके खेल से इतना प्रभावित हुआ था कि उसने उन्हें जर्मन सेवा में करनल बनाने का प्रस्ताव दिया था। 


उन्होंने पूर्वी अफ्रीका जाने वाली टीम का नेतृत्व किया। इस टूर में भारत द्वारा खेले 21 मैचों में ध्यानचंद ने 61 गोल दागे। 


30 वर्ष के उत्कृष्ट करियर के बाद ध्यानचंद ने 1949 में अंतरराष्ट्रीय हॉकी को अलविदा कह दिया। 


वह नेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्पोर्ट्स के मुख्य कोच के रूप में सेवानिवृत हुए। उनके असाधारण योगदान के लिए, भारत सरकार ने 1956 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया।


3 दिसंबर 1989 को महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद जी का निधन हो गया।


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