कालिदास अपने समय के प्रसिद्ध महाकवि और नाटककार थे। उन्होंने कालजई संस्कृत नाटक लिखे थे। उनका साहित्य मूल्य इतना था कि वह भारतीय साहित्य में अमर हो गए
कालिदास के काव्य 'ऋतुसंहार' में बदलती ऋतुओं के साथ प्रकृति का बड़ा सुंदरता से वर्णन किया गया है
यह प्रकृति प्रेमियों के मनोभावों की संवेदनशील व्याख्या भी करता है
कालिदास
(Kaalidas Jivni In Hindi)
कालिदास की जन्मतिथि, उनके निवास और व्यक्तिगत जीवन के बारे में कोई निश्चित और ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है।
केवल प्रचलित किवदंतियों या उनके लेखन से ही जान सकते हैं।
जैसा कि हम जानते हैं, उनका जन्म संभवत भारत के मध्यप्रदेश के मालवा में हुआ था।
कालिदास ने अपने जीवन का अधिकतर समय उज्जैन में बिताया।
उनका विवाह एक सुंदर युवती से हुआ था और वह उससे इतना प्रेम करते थे कि उसे एक दिन के लिए भी कहीं अकेला नहीं छोड़ सकते थे।
ऐसा कहा जाता है कि एक दिन उनकी पत्नी अपने माता-पिता के घर गई। कालिदास अपने घर में अकेले नहीं रह पाए और वह भी उसके पीछे-पीछे चले गए।
इस कार्य के लिए उनकी पत्नी ने उन्हें फटकार लगाई और कहा कि वह अपना काम करें।
इस तरह की अपमानजनक टिप्पणी सुनकर, वह बहुत विचलित हो गए और यह स्थिति उनके लिए उनके जीवन की एक प्रेरणादायक घटना साबित हुई।
कालिदास ने वेदों, उपनिषदों और पुराणों का गहराई से अध्ययन किया।
यही नहीं उन्होंने चिकित्सा शास्त्र, खगोलविद्या और ज्योतिषशास्त्र का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
भारत में दूर-दूर तक यात्राएं की, विविध संस्कृतियों को जानने के लिए और इस तरह ज्ञान इकट्ठा करके कालिदास सम्राट के दरबारी कवि बन गए थे।
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने संवत युग की स्थापना की जो 56 ईसा पूर्व प्रारंभ हुआ।
विद्वान बनने के बाद कालिदास ने कविताएं, नाटक और पुस्तकें लिखी।
रघुवंश, मेघदूत, कुमारसंभव और अभिज्ञान शकुंतलम् उनकी प्रसिद्ध कृतियां हैं।
कालिदास की रचनाओं में मधुरता, गरिमा, पवित्रता और प्रकृति-सौंदर्य और मानवता का जीवंत वर्णन मिलता है।
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