तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर में संवत 1532 ईसवी को हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था।
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तुलसीदास : एक अनन्य राम भक्त
(Tulsidas Jivani In Hindi)
तुलसीदास की पत्नी का नाम रत्नावली था। उन्हें अपनी पत्नी से अत्यधिक लगाव था।
एक दिन उनकी पत्नी अपने पिता के घर बिना सूचना दिए चली गई…
तुलसीदास रात में चोरी-छिपे उन्हें देखने के लिए अपने ससुराल गए….
इससे पत्नी को बहुत लज्जा आई…
उन्होंने तुलसीदास से कहा, “मेरा शरीर केवल मांस और हड्डियों का जाल है, जितना मेरे शरीर से तुम्हें प्यार है, उसका आधा भी भगवान राम से कर लो, तब निश्चित ही इस समुद्री रुपी संसार को पार कर लोगे और अमरत्व तथा अनंत आनंद प्राप्त कर सकोगे।”
इन शब्दों ने तुलसीदास के हृदय को भेद दिया….
वह एक क्षण भी वहां रुक नहीं सके और उन्होंने घर छोड़ दिया और संन्यासी बन गए…
तुलसीदास जी ने अपने 14 साल विभिन्न तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए बिता दिए।
वापस लौटते हुए कुछ दिन वन में बिताए। उनके बर्तन में जो पानी बच जाता था, एक वृक्ष की जड़ों में डाल देते थे जिसमें एक आत्मा वास करती थी।
आत्मा तुलसीदास से बहुत प्रसन्न थी। उसने कहा, “ए मानव! मुझसे एक वरदान मांगो।”
तुलसीदास ने उत्तर दिया, “मुझे भगवान श्रीराम के दर्शन करवा दो। इससे मेरे जीवन का एकमात्र लक्ष्य है सो पूरा हो जाएगा”
आत्मा ने उत्तर दिया, “हनुमान मंदिर जाओ, “वहां हनुमान एक कुष्ठ रोगी के रूप में आते हैं, रामायण सुनने के लिए और सबसे अंत में स्थान छोड़ते हैं। वह तुम्हारी सहायता करेंगे।”
इस तरह तुलसीदास हनुमान से मिले और उनकी कृपा से उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए।
तुलसीदास ने 12 ग्रंथ लिखे। सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रामचरितमानस है।
तुलसीदास कुछ दिन अयोध्या में भी रहे, फिर वह वाराणसी चले गए।
एक दिन एक हत्यारा आया और चिल्लाया, “राम के प्रेम के लिए मुझे भिक्षा दे दो। मैं हत्यारा हूं।”
तुलसीदास ने उसे अपने घर बुलाया, उसे शुद्ध भोजन कराया, जो भगवान राम को चढ़ाया जाता था और घोषणा करी कि अब हत्यारा शुद्ध हो गया है।
वाराणसी के ब्राह्मणों ने तुलसीदास की भर्त्सना की और कहा, “कैसे एक हत्यारा अपने पापों से मुक्त हो गया??
अगर शिव का पवित्र बैल नंदी हत्यारे के हाथ से खा ले, तभी हम स्वीकार करेंगे कि इसका शुद्धिकरण हो गया।”
हत्यारे को मंदिर ले जाया गया और बैल ने उसके हाथ से खा लिया। ब्राह्मण बहुत शर्मिंदा हुए।
तुलसीदास के आशीर्वाद से गरीब महिला के मृत पति को पुनः जीवन मिला। दिल्ली के मुगल सम्राट ने तुलसीदास के चमत्कारों के बारे में सुना। उसने तुलसीदास को बुला भेजा।
तुलसीदास ने उत्तर दिया, “मेरे पास कोई जादुई शक्तियां नहीं है। मैं तो केवल भगवान राम का नाम जपता हूं।”
राजा ने तुलसीदास जी को अपने सैनिकों की मदद से जेल में डलवा दिया और फरमान जारी करते हुए कहा, “मैं तुम्हें केवल तभी जेल से छोडूंगा, जब तुम मुझे कोई चमत्कार या जादुई करिश्मा दिखाओगे।”
तब तुलसी ने हनुमान जी से प्रार्थना की…
शक्तिशाली बंदरों के झुंड के झुंड राजदरबार में घुस आए। सम्राट डर गया और कहा, “ए संत, मुझे क्षमा कर दो। अब मैं तुम्हारी महानता समझ गया हूं।” उसने तुरंत ही तुलसी को कैद से आजाद कर दिया।
1623 ईस्वी में तुलसी ने 91 वर्ष की उम्र में असीघाट, वाराणसी में, अपना शरीर छोड़ दिया और अमरत्व और अनंत आनंद के निवास में प्रवेश कर गए।
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