मियां तानसेन, जो सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक थे, भारत के सभी संगीतकारों में से सबसे महान माने जाते हैं।
उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत विकसित करने में उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई है। उन्हें स्वर सम्राट के खिताब से भी जाना जाता है।
तानसेन
(Tansen Jivani In Hindi)
तानसेन के पिता मकरंद पांडे कवि थे। उन्होंने अपने पुत्र का नाम रामतनु रखा था।
बचपन से ही संगीत के प्रति अपने रुझान के कारण इस लड़के ने भारत के पवित्र नगर वृंदावन के विख्यात स्वामी हरिदास से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की थी।
बाद में रीवा के राजा रामचंद्र के दरबार में गायक बन गए...
यहां से अकबर के दरबार में एक तोहफे के रूप में पहुंचाए गए और तानसेन का जीवन हमेशा के लिए बदल गया।
तानसेन को मियां की उपाधि सम्राट अकबर ने दी थी।
उन्होंने ग्वालियर के महान सूफी संत शेख मोहम्मद गौस के हाथों इस्लाम धर्म अपना लिया, जिन्होंने उनके शिक्षक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन के रूप में कार्य किया।
उनके अपने गुरु के अलावा उस समय उनकी कोई बराबरी नहीं कर सकता था।
नि:संदेह उनकी आवाज इतनी मधुर थी कि जब तानसेन गाते थे, तब चमत्कार कर देते थे...
उदाहरण के लिए, तानसेन राग मल्हार द्वारा बारिश को बुला सकते थे और राज दीपक के द्वारा दीप जला सकते थे।
तानसेन ने कई रागों की रचना की, जो आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत का आधार हैं।
उनमें से कुछ है : मियां की भैरवी, दरबारी तोड़ी, दरबारी कनाड़ा, मियां की तोड़ी, मियां की मल्हार, मियां की मांड, मियां की सारंग और रागेश्वरी।
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