अमेरिका के राष्ट्रपिता कहलाने वाले जॉर्ज वाशिंगटन की पैदाइश 22 फरवरी, 1732 को एक साधारण किसान परिवार में हुई थी। वह स्कूल तो कभी गए ही नहीं।
अपने खाली समय में वाशिंगटन पढ़ाई करके खुद को शिक्षित करते रहते थे। वाशिंगटन ने भूगोल, कृषि और सैन्य इतिहास का स्वयं ही अध्ययन कर लिया था।
युवा होने पर गणित और सर्वे के तरीकों का अध्ययन किया। 16 साल की उम्र में वाशिंगटन वर्जीनिया के पश्चिमी भाग के सर्वे अभियान से जुड़ गए और 17 साल की उम्र में कल्पेपर काउंटी के आधिकारिक सर्वेयर बन गए
जॉर्ज वाशिंगटन : अमेरिका के पहले राष्ट्रपति (George Washington Biography In Hindi)
1750 की शुरुआत में वह मेजर के रूप में वर्जीनिया सेना में शामिल हो गए। 1754 में उन्होंने पहली बार लड़ाई का स्वाद चखा।
वाशिंगटन ने फ्रांसीसी कंपनी पर हमला कर दिया और उसे समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया और फिर उसे वापस वर्जीनिया भेज दिया।
वाशिंगटन ने वर्जीनिया की सेना से मेजर के पद से इस्तीफा दे दिया।
जनरल ब्रैडडॉक के नेतृत्व में ओहियो नदी घाटी में एक बार फिर फ्रांसीसी सेना से सामना हुआ। फ्रांसीसी सेना ने घात लगाकर हमला किया जिसमें जनरल ब्रैडडॉक मारे गए।
वाशिंगटन ने अपनी सेना की सुरक्षित वापसी की जिम्मेदारी ली। उन्हें कर्नल के रूप में प्रमोशन दिया गया।
अगले साल, जब फ्रांस और इंग्लैंड के बीच 7 वर्षीय युद्ध शुरू हुआ तब वाशिंगटन पश्चिमी वर्जीनिया सीमा पर तेनात सेना के प्रभारी थे।
वह माउंट वर्नोन वापस आ गए और 1758 में हाउस ऑफ बर्गेसेस के लिए चुन लिए गए।
अगले 17 सालों तक वाशिंगटन ने सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं दी।
1774 में वॉशिंगटन ने महाद्वीपीय कांग्रेस में वर्जीनिया का प्रतिनिधित्व किया।
1775 में जब अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध शुरू हुआ तब वाशिंगटन कांग्रेस के सामने अपनी सैन्य पोशाक में प्रकट हुए।
और; अपनी सेवाओं को की पेशकश की। एकमत से कांग्रेस ने महाद्वीपीय सेना के गठन की मंजूरी दे दी और उन्हें उसका कमांडर नियुक्त किया गया।
उन्होंने महाद्वीपीय सेना का प्रभार संभाला। अपने आदमियों को संगठित किया। उनका सबसे पहला कार्य कॉलोनीयों के मुखियाओं से निपटना था।
जिन्होंने महाद्वीपीय सेना में शामिल होने से इंकार कर दिया था। वाशिंगटन ने उन्हें शामिल होने के लिए मनाया। इसके बाद जल सेना बनाने का प्रयास किया।
वाशिंगटन को शैल प्रदेशों के बारे में अपने ज्ञान का लाभ मिला। उन्होंने डोरचेस्टर पर कब्जा जमा लिया। वहां तोपें स्थापित कर दी।
इन तोपों ने, ब्रिटिशों पर खूब गोलाबारी करी और उन्होंने शहर खाली कर दिया।
इसी साल के अंत में, इंग्लैंड न्यूयॉर्क शहर पर कब्जा जमाने की योजना बना रहा था और उसका उपयोग एक बेस के रूप में हडसन नदी के आसपास बसी अमेरिकी कॉलोनी को विभाजित करने के प्रयास कर रहा था।
वाशिंगटन ने ब्रिटिशों के इस कदम का पूर्व अनुमान लगा लिया और युद्ध की तैयारी करने के लिए पहले से ही न्यूयॉर्क पहुंच गए क्योंकि उनके आदमियों की संख्या कम थी और उनका प्रशिक्षण भी ठीक प्रकार से नहीं हुआ था।
वाशिंगटन की सेना कई बार ब्रिटिश सेना से हार गई। वापस लौटते समय महाद्वीपीय सेना में मात्र 3000 निरुत्साहित लोगों की भीड़ ही बची थी।
1776 में क्रिसमस की रात में वॉशिंगटन ने ट्रेनटन में ब्रिटिशों पर आक्रमण कर किया।
आश्चर्यजनक रूप से महाद्वीपीय सेना की विजय हुई। कुछ दिनों बाद महाद्वीपीय सेना ने प्रिंसटन में एक और ब्रिटिश इकाई को परास्त कर दिया।
विजय महाद्वीपीय सेना के लिए वरदान साबित हुई। सेना का उत्साह काफी बढ़ा हुआ था।
1777 में उन्होंने अच्छे सेनापतियों का एक दल बनाया और अपने नेतृत्व में साराटोगा में ब्रिटिशों पर हमला कर दिया। इसी दौरान, वाशिंगटन सक्रियता से किसी भी रूप में सहायता की तलाश कर रहे थे।
अमेरिकी प्रतिनिधियों ने यूरोप से कई नेताओं और रणनीतिकारों को नौकरियां दी। उस समय सेना में अनुशासन और प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया जा रहा था।
1778 में फ्रांस ने इंग्लैंड पर युद्ध की घोषणा कर दी और महाद्वीप सेना का समर्थन किया।
1780 में उत्तरी प्रांतों में इंग्लैंड संयुक्त सेनाओं के सामने टिक न सका। वाशिंगटन ने 7000 शक्तिशाली फ्रांसीसी सैनिकों को और 36 जहाजों के बेड़े के साथ यॉर्कटाउन में ब्रिटिशों पर आक्रमण कर दिया।
19 अक्टूबर, 1781 को जॉर्ज वाशिंगटन की चालाक सेना के आगे ब्रिटिश सेना टुकड़ी ने आत्मसमर्पण कर दिया।
हालांकि; आप सभी जानते हैं कि अमेरिकी वासियों को आजादी 1783 में मिली लेकिन, यार्कटाउन में वॉशिंगटन की विजय ने ब्रिटिश शासन के अंत का रास्ता तय किया था।
1789 में वॉशिंगटन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने। वह 8 सालों तक राष्ट्रपति रहे।
उन्होंने तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने से मना कर दिया। 'अपने देश के पिता' सेवानिवृत होकर वरनॉन चले गए।
14 दिसंबर, 1799 को 67 साल की उम्र में अमेरिका के पहले राष्ट्रपति, महान सेना नायक और राष्ट्रपिता की मृत्यु हो गई।
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