प्रकाश पादुकोण की जीवनी | Prakash Padukon Biography In Hindi

प्रकाश पादुकोण की जीवनी | Prakash Padukon Biography In Hindi

प्रकाश पादुकोण खेल के मैदान में ‘जेंटल टाइगर’ के नाम से जाने जाते हैं। वह पहले भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने प्रतिष्ठित 'ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीती।' 


प्रकाश पादुकोण की जीवनी

(Prakash Padukon Biography In Hindi)

प्रकाश पादुकोण का जन्म 10 जून 1955 को बेंगलुरु में हुआ था। उनके पिता रमेश पादुकोण वर्षों तक Mysuru Badminton Association के सचिव रहे थे। 


पहले बैडमिंटन टूर्नामेंट, जिसमें प्रकाश पादुकोण ने भाग लिया वह 1962 में कर्नाटक स्टेट जूनियर चैंपियनशिप थी। जहां वह पहले राउंड में ही हार गए थे। 


बाद में, उन्होंने 1970 में नेशनल जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप जीती। 1971 में 16 साल की उम्र में वह जूनियर नेशनल और सीनियर नेशनल किताब जीतने में कामयाब रहे। 


प्रकाश लगातार 9 सालों तक नेशनल जूनियर खिताब जीतते रहे।


प्रकाश को थॉमस कप चैंपियनशिप के लिए भारतीय अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन टीम में शामिल कर लिया गया। 


उन्होंने 1974 में हुए तेहरान एशियन गेम्स में कांस्य पदक जीता। उसी साल क्राइस्ट चर्च कॉमनवेल्थ खेलों में वह क्वार्टर फाइनल में हार गए। 


उन्होंने 1978 में एडमोनटोन कॉमनवेल्थ खेलों में इंग्लैंड के डेरेक तालबोट को हराकर स्वर्ण पदक जीता। यह प्रकाश पादुकोण का पहला अंतरराष्ट्रीय खिताब था। 

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इसके बाद 1979 में इंग्लिश मास्टर चैंपियनशिप, जो लंदन में आयोजित की गई थी में धाक जमाई। 


1980 में उन्होंने डेनिश ओपन और स्वीडिश ओपन चैंपियनशिप जीती। 


प्रकाश के बैडमिंटन करियर में सबसे उच्च स्तर तब आया, जब उन्होंने ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप का फाइनल मैच जीता। 


इस जीत ने प्रकाश को विश्व रैंकिंग में नंबर एक पर पहुंचा दिया। वह अपने समय के सर्वश्रेष्ठ बैडमिंटन खिलाड़ियों की लीग में शामिल हो गए। 


1980 में स्वीडिश ओपन टूर्नामेंट में उन्हें अपने आदर्श से मुकाबला करने का अवसर भी मिल गया। प्रकाश ने रूडी हारटोना को मात दे दी। 


1981 में मलेशिया में अल्बा वर्ल्ड कप बैडमिंटन टूर्नामेंट को जीत लिया।


वह पहले भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी थे, जिन्होंने कप जीता। 


1982 में डच ओपन और हांगकांग ओपन चैंपियनशिप भी जीती। 


1983 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में होने वाली वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। उन्हें अर्जुन पुरस्कार और पदमश्री से भी नवाजा गया। 


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