दोस्तों, हमारे जीवन में नित्य दिन प्रतिदिन ऐसी घटनाएं, मन - मुटाव होते रहते हैं, जिनसे हमारा उत्साह क्षीण होता है। आज की अपनी इस पोस्ट में हम ऐसी ही बेहतरीन 2 कविताएं लाए हैं, जिनको पढ़ने के बाद आपके उत्साह में चार गुना वृद्धि होगी।
ये तिमिर छटेगा
इन अंधियारी रातों में कब तक,
बाट जोहता हरि की कब तक..
अकर्मण्य बैठा तू, भानु
उदय की राह तकेगा ?
हार सही, कुछ देर सही,
संतापों का परिहार सही...
कब तक दुःख की चादर ओढ़े,
बैरागी मन बना फिरेगा...
कर्म यज्ञ में आहूति बना यौवन को,
उठ, बना भवूका - अनल दंड को...
साहस को ना थमने दे, शनैः शनैः,
ये तिमिर छंटेगा..
✍️ ऋषभ जी (शोधछात्र)
पढ़े :
महाभारत अंश
मैं नितांत अकेला रथ पर,
भुजा को वेध रहे तेरे सर है
तू अहंकार मत कर अर्जुन!
केशव तेरे रथ पर हैं
केशव पार्थसारथी कितने भी,
उनसे भी नहीं डरूंगा मैं..
आ अर्जुन! दिखा बलाबल...
अब तुझसे युद्ध करूँगा, मैं...
✍️ ऋषभ जी (शोधछात्र)
कोरोना : आंशिक प्रलय
हालंकि, ये कविताएं छोटी तो है परंतु कुछ चीज़े छोटी ही ज्यादा असरदार होती है। इन कविताओं के मूल अर्थ में गहनता के साथ जाने पर वास्तविकता का प्रतिपादन आपको अनुभूत होगा।
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