Best Motivational Story In Hindi

Best Motivational Story In Hindi

     7+ ऐसी बेहतरीन रोचक कहानियां जो आपको पॉजिटिव सोचने पर मजबूर कर देंगी
    || Best Inspirational Story In Hindi ||




      मेहनत बड़ी या अकल
      (Motivational Story In Hindi)


      सुमित और पुनीत दो बहुत अच्छे मित्र थे, दोनों एक ही ऑफिस में बड़ी ही मेहनत से और लगन से काम करते थे.


      उन दोनों को ऑफिस में काम करते हुए पूरे 2 साल का समय बीत चुका था.


      सुमित अपना हर काम जब भी पूरा करता था तो बॉस उसकी तारीफ ज्यादा करते थे जबकि पुनीत को अपने काम के बदले तारीफ ना के बराबर ही कभी कभी सुनने को मिलती थी.


      पुनीत को ये बात हजम नहीं हो रही थी, वह इसके पीछे का राज जानना चाहता था, परंतु बड़ी रोचक बात है काफी चहलकदमी करने के बाद भी वह सुमित की यह तरकीब नहीं समझ पा रहा था.


      अब दोनों को 3 साल साथ साथ काम करते हुए होने वाले थे…


      अब ऑफिस में उन्हें अपनी अपनी प्रमोशन होने की पूरी उम्मीद थी.



      बॉस सबसे पहले सुमित को अपने कैबिन में बुलाते हैं और उसका प्रमोशन कर देते हैं जबकि पुनीत को बॉस ऑफिस में बुलाते तक नहीं है.


      पुनीत गुस्से के मारे बिखलाया हुआ ऑफिस से जल्दी घर निकल जाता है. वह 3 दिन ऑफिस की छुट्टी कर लेता है. 


      जब पुनीत ऑफिस जाता है तो वह जाते के साथ हीं सीधा बॉस के कैबिन में कदम रखता है.



       और, बॉस से अपने प्रमोशन नहीं होने का कारण पूछता है तो इस पर बॉस कहते हैं कि पहले पुनीत बाजार में अमरूद वाले को देखकर आओ.


      पुनीत बाज़ार जाता है उसे पूरे बाज़ार में केवल एक अमरूद वाला दिखता है.


      अब बॉस उसे कहते हैं जाओ उसके रेट पूछकर आओ.


      वह 30 रुपए किलो रेट बॉस को बता देता हैं.


      अब बॉस सुमित को बुलाते हैं और उसे सब वही काम बताते हैं…


      सुमित बाज़ार से आता है और वह बताता है अमरूद बजार में 30 रूपए किलो है और अमरूद वाले के पास कुल 50 किलो अमरूद हैं अगर हम उससे सारा अमरूद खरीद लेते हैं तो वह 20 रूपए किलो दे देगा और फिर हम इसे 30 रूपए किलो के दाम से बेचेंगे तो हमें उसे बेचने पर दस रुपए ऊपर के हिसाब से  500 रुपए का मुनाफा होगा.


      अब बॉस बोलते है - समझे पुनीत इसलिए मैने सुमित को प्रमोशन दिया और तुम्हें नहीं. पुनित अपने काम में मेहनत के साथ अपनी अकल का इस्तेमाल भी करता था इसलिए उसे प्रमोशन मिला.


      पुनित को अब अपनी ग़लती का एहसास हो चुका था. वह बॉस से माफी मांगकर अपने काम में लग जाता है.


      सीख (Moral Of The Story)

      अगर हम अपने काम के साथ अकल का भी अच्छे से इस्तेमाल करे तो काम का मज़ा दुगुना हो जाता है इसलिए दोस्तो कोई भी काम करो तो उसके लिए अपनी अकल का भी अच्छे से इस्तेमाल करो.


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      पत्थर का डर
      (Motivational Story In Hindi)


      एक बार की बात है एक मूर्तिकार जंगल से दो पत्थर मूर्ति बनाने के लिए लाता है. पत्थर बहुत भारी और बड़े बड़े होते हैं, वह उन्हें बड़ी मशक्कत के बाद अपने घर लाता है.


      वह जैसे ही पहले पत्थर पर अपने हथौड़े से चोट मारता है तो पत्थर बोलता है रुको रुको! मुझे क्यों मार रहे हो भाई, मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है. मुझे मत मारो, मुझे हथौड़े से डर लगता है.


      फिर मूर्तिकार उस पत्थर को छोड़कर दूसरे वाले पर प्रहार करता है, और पहले ही प्रहार में वह पत्थर को तोड़ने में सफल हो जाता है और आखिर में उस पत्थर से वो बड़ी ही सुंदर गणेश जी की मूर्ति बना लेता है.


      दूसरे वाला डरपोक पत्थर सब कुछ देख रहा होता है.


      दो दिन बाद मूर्तिकार के पास लोग मूर्ति खरीदने आते हैं, तो मूर्तिकार उन्हें मूर्ति बेच देता है. वह दोनों पत्थर को ग्राहक के कहने पर गणेश जी के मंदिर में स्थापित कर देता है.


      डरपोक पत्थर मूर्तिकार से पूछता है अरे! तुम मुझे क्यों ले जा रहे हो? भला! मेरा मंदिर में क्या काम. पूजा तो मूर्ति की होगी न!


      मूर्तिकार कहता है तुम्हारा इस्तेमाल मूर्ति के आगे नारियल फोड़ने के लिए किया जाएगा.


      डरपोक पत्थर कहता है रे बाबा! अब लोग मेरे माथे पर नारियल फोड़ेंगे! मेरा क्या होगा, मैं तो मर ही जाऊंगा.


      अगले दिन मंदिर में बहुत भक्त जन आते हैं और सब उसी पत्थर पर नारियल फोड़ते हैं, जबकि दूसरे मूर्ति वाले पत्थर पर लोग फूलमाला, दूध, मिठाई जैसी चीज़े चढ़ा रहे होते हैं.


      मूर्ति वाला पत्थर अपने जीवन से बहुत खुश होता है.


      डरपोक पत्थर जब भी कोई उस पर नारियल फोड़ने के लिए आता तो अपना मुंह फूला लेता है.


      मूर्ति वाला पत्थर हंसता है और कहता है अगर तुम मुश्किल समय का सामना कर लेते तो शायद तुम्हें ये दिन नहीं देखने पड़ते, जैसे तुम आज देख रहे हो.


      सीख (Moral Of The Story)

      मुश्किल चुनौतियों से दूर मत भागो, बल्कि उनका सामना करो क्योंकि भगवान भी उन्हीं की मदद करते हैं जो अपनी मदद खुद करते हैं.


      शुरु में तो मुश्किल काम से बचकर आसान काम करने में मजा आता है लेकिन बाद में मुश्किल काम का महत्व समझ में आता है कि काश! हमने वो मुश्किल काम कर लिया होता जैसे कहानी में पत्थर का उदाहरण दिया गया है, अगर शुरू में वह पत्थर प्रहार सह लेता तो वह भी मूर्ति के रूप में मंदिर के अन्दर भगवान के रूप में पूजा जाता.


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      महात्मा की सीख
      (Motivational Story In Hindi)


      एक बड़े ही विख्यात महात्मा थे जिनके साथ में केवल 10 बड़े ही होनहार छात्र शिक्षा ले रहे थे.



      महात्मा जी ने उन्हें एक पाठ (सबक) पढ़ाने के लिए, छात्रों को कक्षा में कल थैले में आलू लाने को कहा और आगे कहा कि इन आलुओं पर उनका नाम लिखकर लाओं जिनको तुम अपना दुश्मन मानते हो, या जिनसे घृणा करते हो या फिर ईर्ष्या करते हो.


      अगले दिन सभी छात्र महात्मा जी के कहे अनुसार थैले में आलू लेकर आते हैं. कोई छात्र 5 तो कोई 7 और कोई तो 10 आलू लेकर कक्षा में हाजिर होता है.


      अब आगे महात्मा जी उन्हें इन आलुओं को 10 दिन तक अपने साथ रखने के लिए कहते हैं और कहते हैं सोते, उठते, बैठते हर समय तुम्हें इनको अपने साथ रखना है.


      तीन से चार दिन तक तो वे छात्र आलुओं को बड़ी खुशी खुशी अपने साथ रखते हैं लेकिन इसके बाद आलुओं में से बहुत गंदी बदबू आने लगती है. 


      जिसके पास जितने कम आलू होते हैं उसे उतनी ही कम बदबू आती है और जिसके पास ज्यादा आलू होते हैं उसकी तो बहुत ही बुरी हालत हो जाती है.


      बड़ी मुश्किल से 10 दिन काटने के बाद वे छात्र महात्मा जी के पास जाते हैं.


      अब महात्मा जी उन छात्रों से कहते हैं आपसे 10 दिन इन आलुओं की बदबू बरदाश नहीं हुई और सोचो आप ऐसे कितने सारे लोगों से ईर्ष्या, घृणा करके उनका बोझ तमाम जिंदगी भर ढोते रहते हो. यह ईर्ष्या, घृणा तुम्हारे मन और दिमाग पर भी असर डालते हैं. इन्हें अपने मन और दिमाग पर हावी मत होने दो जिस प्रकार आलुओं में से दुर्गंध आने लगी थी इसी तरह हमारे मन में भी बदबू भर जाती है इसलिए आज ही अपने मन से ऐसी भावनाओं को बाहर निकाल दो.



      सीख (Moral Of The Story)

      अगर हमें शांत,निर्मल और एकाग्रचित बनना है तो मन को हल्का करना होगा और इसके लिए हमें मन में भरी ईर्ष्या, घृणा और दुश्मनी जैसे भाव को बहार निकालना होगा.



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      क्रोध सबसे बड़ा दुश्मन 
      (Moral Hindi Story)


      खलीफा उमर ने अपना सारा जीवन धर्म सेवा और जन कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था. वे धर्म सेवा में इतने मशगूल रहते थे कि अगर इसके बचाव के लिए उन्हें अपनी तलवार भी उठानी पड़े तो वह पीछे नहीं हटते थे. एक बार कुछ ऐसा ही हुआ.


      उनका एक अपने प्रतिद्वंदी से सामना हो गया और वे दोनों आपस में बुरी तरह झगड़ने लग गए, दोनों में भयंकर लड़ाई हुई.


      उमर खलीफा ने आखिर में प्रतिद्वंदी को पछाड़ दिया और उसकी छाती पर चढ़कर बैठ गए.


      उमर खलीफा जैसे ही अपनी तलवार से उसके धड़ को अलग करने जा रहे थे, तभी प्रतिद्वंदी ने अमर खलीफा को गाली दे दी.


      बड़ी ही रोचक बात ये हैं कि इसके बाद उमर खलीफा ने अपनी तलवार वापिस म्यान यानी कवर में रख ली, प्रतिद्वंदी हैरान हो गया. उसे कुछ समझ नहीं आया, लेकिन वो खुश हो गया. आखिर उसकी जान जो बच गई.


      वह उमर खलीफा से पूछता है मेरे गाली देने पर आपने तलवार वापिस क्यों रख ली. इस बात पर उमर खलीफा बहुत ही सुन्दर जवाब देते हैं.


      उमर खलीफा कहते हैं, तुम्हारे द्वारा गाली देने पर मुझे क्रोध आ गया था और मैं तुमसे युद्ध, न्याय के लिए क्रोध के बिना कर रहा था लेकिन अब पहले  मुझे अपने क्रोध को शांत करना होगा फिर मैं तुमसे दोबारा युद्ध करूंगा.


      ये बातें सुनकर प्रतिद्वंदी उनके पैरों में गिर जाता है और उमर खलीफा को अपना गुरु मान लेता है और उनका परम भक्त बन जाता है. 


      सीख (Moral Of The Story)

      क्रोध इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है. ये क्रोध ही है जो हमें हमारे सपनों को पूरा करने से पीछे रोकता है. हमें इस खतरनाक दुश्मन को जल्द से जल्द उखाड़ फेंकना चाहिए और मन को शांत रखने तथा संयम से निर्णय लेने का अभ्यास करना चाहिए.



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      राजा का फैसला और सूझबूझ की जीत

      (Motivational Story In Hindi)


      चंद्रनगर का राजा दयालु, न्यायशील और विवेकी था परंतु वह अब बूढ़ा हो चुका था, अब उसके भीतर इतनी शक्ति मौजूद नहीं थी कि पूरे राज्य की बागडोर अच्छे से संभाल सके इसलिए राजा ने अपने तीनों बेटो में से किसी एक को राज्य देने के लिए सोचा.


      राजा ने इसके लिए एक बहुत ही रोचक योजना बनाई और उनकी चतुराई देखने के लिए परीक्षा लेनी शुरू की.


      राजा ने तीनों बेटों को कुछ मुद्राएं दी और तीनों को एक एक कमरा दिया और कहा कि "तुम कोई एक ऐसी चीज लाओ जिससे ये पूरा कमरा भर जाए और वो चीज़ भी काम आ जाए"


      राजा आगे कहता है "मुझे उम्मीद है कि आप तीनों ये काम अच्छे से करोगे"


      तीनों अपने काम का सर्वश्रेष्ठ देने का वादा करके उस चीज की तलाश में निकल पड़ते हैं.


      सबसे बड़े वाला राजकुमार रूई का ढेर लाता है और पूरा कमरा उससे भर देता है और सोचता है कि बाद में रूई रजाई भरने में काम भी आ जाएगी.


      मंझला राजकुमार ढेर सारी घास लेकर आता है और सोचता है इससे कमरा भी भर जाएगा और बाद में ये घास गाय, बकरी और घोड़े के खाने के काम भी आ जाएगी.


      सबसे छोटे वाला राजकुमार मात्र तीन दीवे लेकर आता है और उन्हें कमरे में अलग अलग तीन किनारों पर जला देता है पूरा कमरा जगमगा जाता है और जो उसके पास मुद्राएं बचती हैं उनसे वो गरीब लोगों को भोजन करवा देता हैं.


      राजा तीनों का परीक्षण करते है और अपने महामंत्री से सारी घटनाओं का बारीकी से जायजा लेते हैं.


      आखिर में राजन सबसे छोटे राजकुमार से बहुत प्रभावित होते हैं और उन्हें राजगद्दी सौंप देते हैं. 



      सीख (Moral Of The Story)

      इंसान अपनी उम्र या शक्ल से नहीं बल्कि अपनी सूझबूझ और कार्य से योग्य बनता है. व्यक्ति के जिन कार्यों से अधिक से अधिक जनहित होता है, वह उसकी योग्यता और दुगुनी करती है.


       अगर हम एक हाथ से दान करते हैं तो हमारे दूसरे हाथ को पता नहीं चलना चाहिए कि हमने आज दान किया था, ऐसा हमें अपने भीतर भाव और समझ पैदा करनी चाहिए.


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      गुरु नानकदेव की सीख
      (Motivational Story In Hindi)


      बड़ी ही रोचक कथा है, एक बार गुरु नानक देव के पास एक डाकू आया और वह उनके चरणों में माथा टेकते हुए बोलता है "मैं चोरी, डकैती और झूठ बोलना छोड़ना चाहता हूं, मेरा मार्गदर्शन करिए गुरुवर"


      गुरु नानक देव डाकू के जीवन को बढ़िया करने के लिए उसे कहते हैं "चोरी और झूठ बोलना छोड़ दो, फिर सब ठीक हो जाएगा"


      डाकू गुरु नानक देव की सारी बाते सुनकर, उन्हें प्रणाम करके चला जाता है.


      परंतु, आगे क्या होता है कि वह डाकू बहुत कोशिश करने के बाद भी अपनी चोरी और झूठ बोलने की आदतों को नहीं छुड़ा पाता है.


      कुछ दिनों बाद वह डाकू दोबारा गुरु नानक देव जी के पास जाता है.


      वह डाकू गुरु नानक जी से कहता है "मैंने चोरी और झूठ बोलना छोड़ने का भरपूर प्रयत्न किया परंतु सबकुछ असफल ही रहा, अब आप ही बताइए मैं क्या करूं?


      गुरु नानक देव जी थोड़ा सोचते है….. 



      फिर वह डाकू को एक सलाह देते हुए कहते हैं कि "जो तुम्हारे मन में आए वो करो परंतु पूरे दिन काम करने के बाद तुम जहां भी झूठ बोलोगे या चोरी करोगे वहां लोगों के सामने तुम्हें बखान करना होगा कि हां! मैने ही चोरी करी है और झूठ बोला है"


      डाकू को यह उपाय बहुत आसान लगता है, और वह उन्हें प्रणाम करके चला जाता है.


      अगले दिन वह एक कोठी में चोरी करने जाता है, वहां से वो बहुत सारा पैसा चोरी कर लेता है, और भी बहुत से घरों में वो चोरी करता है.


      शाम को जब वह लोगों के सामने जहां उसने चोरियां की थी वहां बखान करने की कोशिश करता है तो उसके मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल पाता, वह बोलने में बहुत संकोच करता है और उसे अपने किए पर पछतावा होने लगता है.


      अगले दिन वह डाकू गुरु नानक देव जी के पास जाता है और उनके चरणों में माथा टेकते हुए कहता है "जो उपाय मुझे सबसे आसान लग रहा था वह उपाय बिल्कुल भी आसान नहीं था, अब मेरी आंखें खुल चुकी है. लोगों के सामने मुझे अपनी बुराईयां कहने में लज्जा, दुख होता है इसलिए मैंने अपनी बुरी आदतों को छोड़ दिया"


      अंततः गुरु नानक देव जी ने उस डाकू को अपराधी से अच्छा इंसान बना दिया.


      सीख (Moral Of The Story)

      अच्छाई और बुराई हर इन्सान में होती है. आप कैसे अपनी अच्छाइयों को जीते हैं, यह बात बहुत मायने रखती है. 


      सच्चाई की ताकत सदैव बुराई की ताकत पर हावी रही है और आखिर में जीत भी सच्चाई की ही हुई है, इसलिए दोस्तो हमें अच्छी आदतों को अपनाना चाहिए ताकि हम अपने जीवन का वास्तविक उद्धार कर सके.




      खरगोश की चलाकी

      (Motivational Story In Hindi)


      एक बार की बात है एक जंगल के किनारे पर बहुत ही सुन्दर द्वीप था और उस द्वीप के चारो तरफ तालाब था. उस द्वीप की खास बात यह थी कि उसके वृक्षों पर बहुत ही मधुर मधुर और बड़े ही स्वादिष्ट फल लगे हुए थे. 


      जंगल का हरेक जानवर उस द्वीप पर जाने के बारे में सोचता था, परन्तु जा नहीं पाता था क्योंकि उस द्वीप पर मौजूद तालाब में  खरतनाक मगरमच्छो का डेरा था.


      हर जानवर उन मगरमच्छो से डरता था.


      जंगल में खरगोश बड़ा चालाक जानवर था, वह किसी भी तरह से उस द्वीप पर जाना चाहता था और उन फलों को खाना चाहता था.


      खरगोश बहुत सोचने के बाद मगरमच्छो से निपटने का एक प्लान बनाता है.


      खरगोश अगली सुबह तालाब के किनारे आकर मगरमच्छो को जोर-जोर से चिल्लाकर बुलाता है. मगरमच्छ पानी से बाहर निकलकर आते हैं.


      खरगोश अपनी प्लानिंग के हिसाब से बोलना शुरू कर देता है. खरगोश मगरमच्छो से कहता है कि आप लोग पहले मुझसे प्रोमिस करो कि मुझे परेशान नहीं करोगे. मगरमच्छ खरगोश से प्रोमिस करते हैं.


      खरगोश कहता है - जंगल के राजा शेर साहब ने बड़ी ही अच्छी दावत देने का फैसला किया है, इसके लिए राजा ने मुझे सभी जानवरों की सूची यानी लिस्ट बनाने के लिए कहा है तो इसलिए मुझे आप सबकी गिनती करनी होगी.


       मगरमच्छ कहते हैं परंतु तुम हमारी गिनती करोगे कैसे?


      खरगोश - आप सभी एक लाइन में लग जाओ, मैं आप में से हरेक की पीठ पर चढ़कर गिनती कर लूंगा.


      सभी खरगोश की बात मान लेते हैं.


      उन मगरमच्छो की लाइन इतनी लंबी हो जाती है कि वो उस द्वीप तक पहुंच जाते हैं.


      खरगोश उनकी पीठ पर कूद-फांद करता हुआ, उस द्वीप तक पहुंच जाता है और सभी फलों का बहुत शौक से आनंद लेता है, वह मज़े से पेट भरकर सभी स्वादिष्ट फल खाता है.


      तालाब में सभी मगरमच्छ सोच में पड़े होते हैं कि इतनी देर हो गई अभी तक पता नहीं खरगोश क्यों नहीं आया.


      जब ही थोड़ी देर में खरगोश निकल कर आता है.


      एक मगरच्छ पूछता है, क्यों भई! इतनी देर कैसे लग गई?


      खरगोश कहता है - वो मैं कंफ्यूज हो गया था, मुझे लगता है मैने गिनती में गड़बड़ कर दी इसलिए मुझे दोबारा से शुरू करनी पड़ेगी.


      खरगोश फिर से लाइन बनवाकर कूदता फांदता वापसी जंगल की ओर पहुंच जाता है. 


      बाद में मगरमच्छो को मुंह चिडाता हुआ चला जाता है.


      सीख (Moral Of The Story)

      दिमाग को साथ में लेकर तो हर कोई चलता है परंतु कौन उसका सही और बढ़िया इस्तेमाल करता है ये ही उसे महान और आम इंसान बनाता है. 


      हमें बुद्धि का सही उपयोग करके अपने जीवन को निरंतर आगे और समृद्ध बनाने की कोशिश करनी चाहिए.



      पढ़े - जाने नवाजुद्दीन सिद्दिकी की पूरी कहानी


      परतंत्रता से बुरा कुछ नहीं

      (Motivational Story In Hindi)


      एक बार की बात है, संत कृपाचार्य (काल्पनिक नाम) के आश्रम में एक शिष्य तोता लाया और उस शिष्य ने उस तोते को पिंजरे में कैद कर दिया. संत के कई बार समझाने के बाद भी वह नहीं माना संत ने उससे कई बार कहा कि "परतंत्रता से बुरा कुछ नहीं है इसे उड़ जाने दो" लेकिन शिष्य तो अपनी ही धुन में मस्त था.


      जब शिष्य संत की बात नहीं समझा तो उन्होंने उसे समझाने का दूसरा तरीका चुना.


      संत ने क्या करा कि तोते को ही ये लाइन रटा दी कि "परतंत्रता से बुरा कुछ नहीं है, उड़ने में भलाई है"

      संत रोज ये लाइन तोते को रटाते.


      एक बार क्या हुआ कि ग़लती से शिष्य द्वारा पिंजरे का दरवाजा खुला रह गया और फिर तोता बाहर निकलकर आया और जोर-जोर से बोलने लगा "परतंत्रता से बुरा कुछ नहीं, उड़ने में ही भलाई है"


      फिर वह संत को आता देख दोबारा पिंजरे में चला जाता है. संत ये देखकर हैरान हो जाते हैं.


      संत सोचते हैं काश ये जो बोल रहा है वो समझ भी पाता तो ये आज पिंजरे में कैद न होता.



      सीख (Moral Of The Story)

      हममें क्या कमी है कि हम लोगों को ज्ञान के बड़े बड़े उपदेश देते हैं लेकिन उनको कभी खुद नहीं समझते हैं. अगर हम उन बातों को खुद ही मानना शुरु कर दें तो हमारा जीवन ही सवर जाएगा.



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