संतोष धन सबसे बड़ा धन है और ये धन अक्सर लोगों में बहुत ही कम पाया जाता है। हर कोई अपनी जिंदगी में और की भावना के चलते संतोष धन को प्राप्त नहीं कर पाता है। आइए पढ़ते हैं ये बेहतरीन moral story in hindi for students :
कीमत संतोष की (Moral Story In Hindi For Students)
बात है एक अंधे व्यक्ति की जो अपना गुजारा भीख मांगकर करता था।
अक्सर सड़क के किनारे उसे देखा जा सकता था और नेत्रहीन होने के कारण वह और कुछ कर भी क्या सकता था ?
रोज शाम को वह सड़क के किनारे खड़ा हो जाता था और वहां से गुजरने वाले लोग उसे जो भी भीख में या दान में देते थे, वह उसी से अपना जीवन यापन करता था।
कभी पांच तो कभी दस के नोट भीख में उसे मिल जाया करते थे।
अंधा व्यक्ति हर दिन की तरह सड़क के किनारे बैठ गया और भीख मांगने लगा।
एक बार वहां से एक रईस और सज्जन पुरुष वहां से गुजर रहे थे और उन्होंने उस अंधे व्यक्ति की हालत को देखा।
अंधे व्यक्ति के फटे पुराने कपड़े और शरीर को देखकर उस सज्जन पुरुष को बहुत ही ज्यादा दुःख हुआ।
और वह उसे 100 रूपये उसके हाथों में थमा देते है।
पैसे देने के बाद वह सज्जन पुरुष अपने काम के लिए निकल जाता है।
मिले हुए उस नोट को अँधा व्यक्ति जब टटोलने की कोशिश करता है तो वह समझ नहीं पता है कि उसके हाथ में 100 का नोट है।
क्योंकि अक्सर उसे पांच या दस के नोट ही भीख में मिलते थे।
और वह सौ का नोट उन दोनों नोटों की तुलना में अंधे व्यक्ति को कुछ बड़ा और बेकार सा लगा।
उस अंधे व्यक्ति ने मन ही मन ये सोच लिया कि उसके अंधेपन का लोग मजाक उड़ा रहे हैं और उसे कागज़ का एक टुकड़ा पकड़ा दिया है।
यही सब सोचते और ईश्वर से शिकायत करते हुए उस अंधे व्यक्ति ने वो सौ का नोट वहीं जमींन पर मरोड़कर फेंक दिया और फिर भीख मांगने लगा।
उस अंधे व्यक्ति के पास एक और सज्जन पुरुष खड़े थे।
उन्होंने उस नोट को उठाया और उस अंधे व्यक्ति की ओर बढ़ा दिया और उन्होंने उस अंधे व्यक्ति से कहा कि उसने जिस नोट को एक कागज समझकर फेंक दिया है, वह सौ का नोट है।
ये सुनते ही उस अंधे व्यक्ति ने वह नोट झट से पकड़ लिया।
और, उस अंधे व्यक्ति ने दोनों ही सज्जन पुरुषों को अपने मन से धन्यवाद किया और ईश्वर को धन्यवाद किया।
शिक्षा
(Moral Of The Story)
इस कहानी से ये शिक्षा मिलती कि बिना देखें और जाने किसी को भी बुरा भला नहीं कहना चाहिए।
कभी कभी आँखें भी धोखा खा सकती है और नेत्रों के आभाव में तो निर्णय गलत हो सकते हैं। ईश्वर को कोसने के बजाय जो आपको मिल है, हमें उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए।
जो नहीं मिला या हमारे पास नहीं है, हमें उसकी चिंता नहीं करनी चाहिए।
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