पंचतंत्र की बेहतरीन प्रेरणादाई कहानी में से एक चूहिया का स्वयंवर कहानी। विष्णु शर्मा जी की पंचतंत्र की कहानियां सभी लोगों की उम्र के लिए एक संजीवनी बूटी की तरह सिद्ध होती है, आइए पढ़ते हैं ये बेहतरीन पंचतंत्र की रोचक कहानी:-
चूहिया का स्वयंवर
(Panchtantra Story In Hindi)
एक समय की बात है एक मुनिराज नदी में खड़े होकर सूर्य देव की पूजा कर रहे थे। वे अपने अंचुरी में थोड़ा सा जल ले कर सूर्य देव को अर्पित कर रहे थे।
उसी वक्त आकाश मार्ग से एक बाज उड़ान भर रहा था तभी उसके चोंच से एक चूहिया छूटकर मुनि के हाथ पर गिरी।
मुनि की आंख खुली तो उन्होंने चूहिया को देखा उसका हाल देखकर उन्हें बड़ा तरस आया। उन्होंने निश्चय किया कि वह उस चूहिया को एक खूबसूरत कन्या में बदल देंगे और उसका पालन पोषण करेंगे और उसे एक योग्य नारी बनाएंगे।
मुनि ने अपने प्रताप से उस चुहिया को कन्या के रूप में बदल दिया।
उस कन्या को लेकर अपने आश्रम गए और अपनी पत्नी से कहा कि इस बच्ची को अपनी बेटी समझ कर इसका सही तरीके से पालन पोषण करें।
आज्ञा अनुसार मुनि की पत्नी ने उस कन्या को एक अच्छी परवरिश देकर उसे योग्य स्त्री बनाया।
कुछ वर्ष बीते और अब वह कन्या विवाह के योग्य हो गई।
मुनि की पत्नी ने मुनि राज से एक योग्य वर ढूंढने की इच्छा जताई।
मुनि ने अपने प्रताप से सूर्य देवता को धरती पर बुलाया और सूर्य देवता को कन्या बहुत पसंद आई।
मगर कन्या ने यह कहकर विवाह से इंकार कर दिया कि सूर्य देवता का प्रताप बहुत तेज है जिससे वह उनसे आंख नहीं मिला पा रही।
उसके बाद मुनिराज ने सूर्य देवता से उनसे भी बढ़िया और योग्य वर के बारे में पूछा।
सूर्य देवता ने कहा कि बादल उनसे भी अति शक्तिशाली है क्योंकि वह सूर्य के प्रकाश को पूरी तरह ढक लेता है।
मुनि ने बादल से कहा कि क्या वे उनकी कन्या से विवाह करना चाहेंगे।
बादल (मेघ) देवता को कन्या बहुत पसंद आई है मगर कन्या ने बादल को काला कहकर शादी करने से मना कर दिया।
उसके बाद मुनि ने बादल से उनसे भी अति शक्तिशाली और प्रतापी वर के बारे में पूछा तो बादल ने पवन देवता को एक उत्तम वर के रूप में सुझाव दिया।
अब मुनि पवन देवता के पास गए और उनसे विवाह की बात की।
मगर इस बार भी हमेशा की तरह कन्या ने पवन को चंचल कहकर विवाह से इनकार कर दिया।
उसके बाद पवन देवता ने पर्वत को उनसे भी उत्तम बताया।
मुनि राज पर्वत के पास गए और पर्वत राज से विवाह की बात की।
मगर कन्या ने पर्वत को गंभीर और कठोर कहकर विवाह से इंकार कर दिया।
अंत में जब पर्वत से पूछा गया तो उन्होंने कहा चूहा मुझसे भी अति बलशाली होता है क्योंकि वह मुझ जैसे कठोर पर्वत में भी बिल कर देता है।
इसके बाद मुनि मुशकराज के पास गए और उनसे विवाह की बात की।
उन्हें कन्या बहुत पसंद आई और इस बार कन्या ने मूषकराज को देखते ही विवाह के लिए हां कह दिया।
इसके बाद मुनि और उनकी पत्नी ने अपनी कन्या की शादी मूषकराज के साथ करवा दी और वे दोनों खुशी–खुशी विदा हो गए।
सीख
(Moral Of The Story)
आज की इस कहानी से हमने यह सीखा कि हमें अपनी वैल्यू को समझना चाहिए। हम बेवजह ही पता ही नहीं क्यों इतने सारे फिजूल के कामों में फंसे होते हैं क्योंकि हमें काम को मना करना नहीं आता। हमें अपने महत्त्व की चीजों का ज्ञान होना बेहद ही जरुर हैं ताकि हम अपने जीवन का विकास कर सकें
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